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संप्रत, संप्रति, संप्रती
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
देखा 'सांप्रत' (रू.भे.)
उदा.--
1..सिद्धपुरादिक ठिकांणां सनेमीस्वर विहारादिक जिन मंदिर
संप्रति
कराया गजधर, अस्वधर नरधर मंडित।--बां.दा.ख्यां.
उदा.--
2..यह सेव देव हळचळ प्रबळ, अति मंगळ अमरावती। निस अगनि चरित दीठौ निजर, पड़ै झूठौ
संप्रती
।--रा.रू.
उदा.--
3..
संप्रति
ए किना किना ए सुहिणौ, आयौ कि हूँ अमरावती। जाइ पूछियौ तिणि इमि जंपियौ, देव सु आ दुआरामती।--वेलि.
उदा.--
4..कमनीय करै कंकूं चौ निज करि, , कळंक धूम काढै बैकाट।
संप्रति
कियौ आप मुख स्यांमा, नेत्र तिलक हर तिलक निलाट।--वेलि.
उदा.--
5..पयठा हवइ। पांवड आज आभइ, किमइ करी
संप्रति
सुद्धि लाभइ। तउ तेह नी ओधि ज एह भाजइ, सुखिइं थिका कौरव राज छाजइ।--सालि सूरि
उदा.--
6..विसमिउं कटक कौरव केरउं, दैव चक्र किम कांइ्र फेरिउं। नारि सइरि सर संप्रति आवइं, कइ अगास पड़तां एउ भावइ।--सालि सूरि
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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