सं.पु.
सं.सम्भोग
1.किसी वस्तु का भली भांति किया जाने वाला उपयोग।
2.रति क्रिया, मैथुन।
- उदा.--बात न कहुं प्रगट करै, संभोगे अनुकूल। जन्म न ऐड़ा पुरस रौ, प्रिया न विसरै मूळ।--वैताल पच्चीसी
3.साहित्य में श्रृंगाउर-रस का एक भेद, संयोग श्रृंगार।
4.वह पुरूष जो गुदा मैथुन का आदि हो गया हो।
5.व्यवहार।
- उदा.--पन्नां नें दीक्षा देवा री आग्या नहीं। अनें जो दीक्षा दीधी तो आपां रे हाआर पांणी रौ संभोग भैळो नहीं।--भि.द्र.
6.हाथी के कुम्भस्थल या मस्तिक का एक भाग। संभोगी--वि.(सं.संभोगिन्)
विशेष विवरण:-जैन साधुओं के आपस में बारह प्रकार के व्यवहार (बर्ताव) होते हैं। उनमें से एक साथ बैठकर भोजन पान करने का भी व्यवहार होता हैं सौ यदि 'पन्ना' के बिना आज्ञा दिक्षा दे दी गई हो तो एक साथ बैठकर भोजन करने का व्यवहार शामिल न होगा।