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सखि  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
देखो 'सखात' (रू.भे.) (ह.नां.मा.)

सखि, सखिए, सखी, सखीय  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.सहेली, सहचरी। (अ.मा; डिं.को.)
  • उदा.--1..सखी भरोसौ नाह रौ, सूनौ सदन म जांण। फूल सुगंधी फौज मैं, आसी भंवर उडांण।--वी.स.
  • उदा.--2..सखीय सहित तिहिं राजकुआरि आवी ऊलटि आपणइ ए। सांथिइं आंणीआ तुरंगम त्रिण्णि आंणी कोडि कंचण तणी ए।--हीराणंद सूरि
  • उदा.--3..सरी घटियाळ अरोहित सेर, सख्यां महताहळ माळ सुमेर। किया सरजीवत तेड़ि कबंध बूझै पितु मात कुसी धजबंध।--मे.म.
  • उदा.--4..मीदरंतीर किया खिणंतरि मिळिवा, विचित्रै सखिए समाव्रत। कीधै तिणि वीवाह संसक्रित, करण सु तणु रति संसक्रत।--वेलि.
2.किसी नायिका के साथ रहने वाली स्त्री जिससे नायिका कोई बात न छुपावे। (साहित्य)
3.प्रत्येक चरण में 14 मात्राऐं व अंत में एक मगण या एक यगण का छंद। (सं.शिखिन्‌)
4.अग्नि, आग। (डिं.को.) वि.(फा.)
5.दानी, दातार, उदार।
रू.भे.
संइ, सइयर, सई, सयी, सहि, सहियर, सही।
पर्याय.--आली, वयसा, सचैत, स्रधीची, सयण, सहचरी, सहेली, सुखदा, सुवंछक, हितू।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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