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सगाई  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.सम्बंध, रिश्ता।
  • उदा.--1..सबळ सगाई नां गिणै, नां सबळां में सीर। खूरम अठारै मारिया, कै काका कै बीर।--अज्ञात
  • उदा.--2..स्वांग सगाई कुछ नहीं, रामं सगाई सांच। दादू नाता नामका, दूजै अंग न रांच।--दादूबांणी
  • उदा.--3..आगै 'कमो' वधै आझाळां, चौड़ै मार लियौ कळचाळां। सांमधरम लेखवै सगाई, भिळियौ खळां न लेखै भाई।--रा.रू.
2.विवाह के पूर्व की वह रस्म या प्रथा जिसके अनुसार पुत्र और कन्या का सम्बंध निशितच होता है, मंगनी।
  • उदा.--1..बैर अमल सूं बढै, सगाई अमलां सांधै। अमल गळीजै अवस, ब्याह में तोरण बांधै।--ऊ.का.
  • उदा.--2..राजवीयां नै ग्याळां किसी ग्याति। कुण जाति कुण पांति। राजवीयां री सगाई तो राजवीयां सूं बूझै छै।--वेलि.टी.
3.सम्बन्धी या रिश्तेदार होने की अवस्था या भाव।
4.विधवा व पुरुष का सम्बन्ध जो कई जातियों में विवाह ही समझा जाता है।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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