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सजन     (स्त्रीलिंग--सजनी)  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
देखो 'सजण' (रू.भे.) (अनेका; डिं.को.)
  • उदा.--1..पै'ली कीन्ही प्रीत भूल गयौ वाल्हा सजन। मनमैं म्हांरै मीत, जीव बसै थूं जेठवा।--जेठवा
  • उदा.--2..सत्थवाह मोकलावीय मनरंगि धनसागर पुर जोइ। सजन विहूणउं सहूइ सूनउं सुद्धि न पूछइ कोइ।--हीराणंद सूरि
  • उदा.--3..चारा मिणतोड़ी सजनी चित चावै, तारा गिणतोड़ी रजनी बितवावै।--ऊ.का.
(स्त्री.सजनी)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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