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सटा  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.शटा
1.शेर या घोड़े के गर्दन के बाल, अयाल।
  • उदा.--1..सटा न मावै बाथ में, फलंग अटा गरकाब। पेख छटा सूकै पटा, सिंधुर घटा सताब।--बां.दा.
  • उदा.--2..जाजुळी धाराळ नारसिंघ री सटा रौ जायौ, प्रळै काळ घटा री छटा रौ जायौ पूत। रिमांधू उथाळौ चडी रीस री रटा रौ जायौ, भालौ किनां ईस री जटा रौ जायौ भूत।--सूरजमल मीसण
2.साधु-संन्यासियों के शिर के बाल। (डिं.को.)
3.बालों की चोटी।
4.देखो 'छटा' (रू.भे.)
  • उदा.--लटा लूंब दुम बन लता, कुस सटा चहुकोर।उदीपण भूखण अटा, घटा मोर घण घोर।--क.कु.बो.
रू.भे.
सट।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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