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सता  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
1.सत्य।
2.कला।
3.भक्ति।
4.चमत्कारपूर्ण कृत्य, सिद्धि।
  • उदा.--करामात री बात साखात कैई। सता मातरी चंद्र कूपादि सैई।--मे.म.
5.प्रकृति।
6.माया, लीला।
7.अस्तित्व।
  • उदा.--1..ज्यूं नभ माथै रवी अरु रजनी, आवै अरफ जावेरी। तम प्रकास दोनू दिखलावै, सूं सम सता रहैरी।--स्त्रीसुखरांम जी महाराज
  • उदा.--2..ज्यूं दरपण कै अंतर, बाहिर मुखा भास विचारी। अंतर सूक्ष्म बाहिर स्थूला, ता मध सता हमारी।--स्त्रीसुखरांम जी महाराज
8.वास्तविक अस्तित्व।
9.संयाग, इत्तफाक।
  • उदा.--जै सता थांरौ कैणौ मांन जातौ तो तिजोरी रै मूंडागै दोनूं चोरा री ढिगली कीकर व्हैती।--फुलवाड़ी
10.बल, शक्ति।
11.भगवान, श्रीविष्णु।
12.देखो 'सत्ता (रू.भे.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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