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सब  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
1.समस्त, कुल।
  • उदा.--1..अखिल जगत मैं सकति अखारै, तै सब है अवतार तिहारै। चारन तूझ चरन कै चेरै, तिन मैं जन्म लिये बहु तरै।--मे.म.
  • उदा.--2..अस्वीन चैत्र मास पख ऊजळ, थित सब सकति होत मंडळ थळ। तांन गांन ततकार बजत्रन, ध्वांन सिसर ततधन आंनद्धन।--मे.म.
  • उदा.--3..पण सबसूं छोटकी रांणी रै हाल जापौ नीं.व्हियौ हौ। उण वास्तै उण नै बारै राखी।--फुलवाड़ी
2.अवधि, मात्रा, विस्तार, आदि के विचार से जितना है वह कुल, सर्व।
  • उदा.--कागां केरी चांच ज्यूं, चुगलां केर जीह। सिवटा ज्यूं परची वुरी, चूंथै सब ही दीह।--बां.दा.
रू.भे.
सबै, सब्ब, सब्बा, सब्बी, सब्बै, सब्भ, सब्भै, सभ, सभी, सम्भ, सवि, सवै।
सं.स्त्री.(फा.शब) रात, रात्रि।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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