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सर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.शर:, सर:
1.बाण, तीर। (अ.मा; डिं.को; ह.नां.मा.)
  • उदा.--1..ताळ चरंती कूंझड़ी, सर संधियउ गंमार। कोइक आखर मनि बस्यउ, उडी पंच समार।--ढो.मा.
  • उदा.--2..पछै कुंवर स्री दळपतजी आपरै हाथ सर मारिया। ताहरां कुंवर स््रबाळक हुता तिण सर अंगुळ च्यार मार की।--द.वि.
  • उदा.--3..अरजुनु पठि सिखंडडीयाह बइसी सर मूकइ, पडीउ पीयामहु समर माहि किम अरजुनु चुकइ।--सालिभद्र सूरि
  • उदा.--4..चिहु पखै अरजन बांण छूटइ, सन्नाह माहिइ सर सीघ्र फूटइ।--सालिसूरि
2.दुग्ध, दूध। (डि.को.)
3.दूध की मलाई।
4.पाँच की संख्या। (डि.को.)
5.लड़ियों वाला हार, माला, कंठी।
  • उदा.--चंपा केरी पांखड़ी गूंथूं नव सर हार। जउ गळ पहरूं पीव बिन, तउ लागै अगार।--ढो.मा.
6.गति, गमन।
7.जुलाब लागने वाला पदार्थ।
8.सिराऊ छौर।
9.सामुद्‌क्कि शास्त्र कें अनुसार व्यक्ति की हथेली में होने वाला तीर का सा निशान जो शुभ फल का सूचक होता है। (सं.शरं, सरं)
10.समुद्र, सागर। (डिं.को.)
  • उदा.--1..सर गिरवर तारै पदम अठारै, सेन उतारै जगत सखै। भिड़ रांवण भंजै गढहिम गजै, अमरां रंजै ब्रहम अखै।--र.ज.प्र.
  • उदा.--2..आथां भरै बाथां हाथां भोज ज्यूं जुटावै इळा, ठावी सरां सातांइ कीरती थटा थैट। बातां अै न जावै बापौ करै बैठा पातां साढा साताबीसी पौचाया पाकेट।--मूळसिंघ करमसोत रौ गीत
11.तालाब, जलाशय। (अ.मा; डि.को; ह.नां.मा.)
  • उदा.--1..घूंघट खोलंदी नहीं, बोलंदी पिक बैण। गजपत जावै गौरियां, लांबै सर जळ लैण।--बां.दा.
  • उदा.--2..लांबै सर पांणी रै, गोरी गात अनूप। ज्यां आगै पांणी भरै, रंभ अलौकिक रूप।--बां.दा.
12.पानी, जल। (ह.नां.मा.)
13.कूप, कुआ।
  • उदा.--थेटू घर संवर ऊंडा सर थागै, आंरै माळागर मूंढा रै आगै। सारी कीमत है करियोड़ा सारै, हीमत भरियोड़ा हीमत नह हारै।--ऊ.का.
14.सात की संख्या। (डि.को.)
15.जलप्रताप, झरना।
16.वह नीची भूमि जहाँ वर्षा का जल इकट्ठा हो जाता हो व सूखने पर ऐसी भूमि पर प्राय: गेहूं, ज्वार, चले आदि बोये जाते हों।
  • उदा.--इण तरफ गांव कंरिया, एक साख, खेती-बाजरी री, मूंग, मोठ, तिल। कूवै पांणी पुरसै 20 मीठौ। बीजी तरफ कुछ दिसा, धरती कालार, तठै सर भरीजै, तठै ज्वार, गोहूं।--नैणसी
17.पक्ष। (मि.पखौ)
18.सरपत की जाति का एक पौधा विशेष जिसमें गांठ वाली छड़ी होती है, सरकंडा। (डि.को.)
19.दो मात्रा के दो लघु का नाम। (डि.को.)
20.छप्पय छंद का 35 वां भेद जिसमें 36 गुरु और 80 लघु से 116 वर्ण या 152 मात्राऐं होती हैं।
21.प्रशंसात्मक काव्य। (सर काव्य) (फा.सर)
22.सिर मस्तक। (डि.को.)
  • उदा.--1..एतलइ सूरड़सरमा ढलि ढोल बाजइं, जांणै आसाढू किरि मेह गाजइ। हीया ध्रू सकइं सर सेस सूकइं, भय बीहता कायर जीव मूंकइ।--सालिसूरि
  • उदा.--2..भरम करम इनका है संगी जै कोई दूरि विडारै रे। निसदिन नांव करत रुखवाळी, ग्यांन ध्यांन सर धारै रे।--अनुभववांणी
  • उदा.--3..सूतळ नाथां सर नासां सणकारी, फुरणी दूधातां रासां फणकारी। झूसर धायां गळ आवढ कढ झांखै, नम नम सावढ नै नायां कण नाखै।--ऊ.का.
23.एक प्रकार अस्त्र विशेष।
24.हिमपात, पाला।
  • उदा.--पीतल परिकर पर चीतळ कर परसै, बेहद महितळ सिर सीतळ सर बरसैं। खळ भळ खावण नै म्रगसिर खळ खेघे, बावळ वरफांरी तरफां सूं बेधै।--ऊ.का.
25.ताश के खेल में ऐसे रंग का पत्ता जो काट माना जाता हो। सं.स्त्री.--
26.उक्त खेल में जीती जाने वाली बाजी। ज्यूं--म्हांरी सात सरां बणी (बण्या) है।
27.रस्सी, डोरी।
28.जीत, विजय।
  • उदा.--1..तरै रावळ वजीर लाडक नूं कह्यौ--बीजें तौ सर पावां नहीं, तूं बूढौ पण हुवौ छै। तूं मरण तेवड़ नै खंगार नूं मारै तौ पोहचां--नैणसी
  • उदा.--2..जद जलाल कही--सरंजांम पाऊ सौ सर कर आंण मुजरौ करूं कै कागदां मैं ही लपेटियौ आऊं।--जलाल बूबना री बात (अं.) 29 ब्रिटिश सरकार की एक समानित उपाधि। महाशय, महोदय। ज्यूं--सर प्रताप
1.दबाया हुआ।
  • उदा.--कपट कोठारियां तणां इम किताई, जिकै सारा कया नहीं जावै। इणांनै सर करै जिसा जग आज दिन, आप बिन और नह निजर आवै।--ऊमरदांन लालस
2.हराया हुआ, पराजित।
  • उदा.--काळै सार बडै कारीगर, जीजरियां रण जुवा जुआ। पर लोहार किया सर पाधर, हालै सात्रव जेर हुवा।--तेजसी सांदू
3.जीता हुआ, विजित।
4.विजय प्राप्त कियाहुआ, जीता हुआ।
5.प्रमुख, प्रधान।
6.उत्तम, श्रेष्ठ।
  • उदा.--बाल अवस्था बुध कछु नाइ, चंचळ अति मलीना। सारासार सर मौसर न जांणै, पराधीन बळहीना।--स्रीसुखरांम महाराज
7.तीक्ष्ण, तीखा। (डि.की.)
8.समाप्त किया हुआ। प्रत्यय--
1.एक प्रकार का प्रत्यय जो कुछ शब्दों के अन्त में लगकर अनुसार, मुताबिक, पर, ऊपर, सा से अर्थ प्रकट करता है।
  • उदा.--मारण वाळै दुस्अी टाबर रै सरीर माथै सूं तीब री तीब उतार लीवी ही। कायदेसर पुलिस नैं इतला देवणी पड़ी। लास रो पोस्त--मारटम हुयौ अर तीजै दिन जावतां लास नैं दाग पड़्‌यौ।----अमरचूंनड़ी ज्यूं धंधरेर, कांमसर, नौकरीसर, बगतसर, ढंगसर, ठीकसर।
2.पूर्व कालिक क्रिया के साथ जुृने वाला शब्द।
  • उदा.--तब बाकरखां भड़ाकदेसर घोड़े सूं उतर आप रै बेटै रो हाथ झालि पकड़ घोड़े ऊपर चढियौ।--ठाकुर जैतसी री बारता
3.देखो 'स्वर' (रू.भे.)
  • उदा.--1..डीभू लंक, मराळि गय, पिक--सर एही वांणि। ढोला; एही मारुई, जेहा हंझ निवांणि।--ढो.मा.
  • उदा.--2..बग रिखि राजांन सु पावसि बैठा, सुर सूता थिउ मोर सर।चातक रटै बलाहकि चंचळ, हरि सिणगारै अंबहर।--वेलि.
वि.--

सर, ौ  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
देखो 'सारीखौ' (रू.भे.)
  • उदा.--1..जइ मझ सर, ी सोलह नारि आपु बांणी भलै सिणगारि तु हूं जि राउ जिमाडेसु रंगि नव नव भोजन नव नव भंगि।--हीराणंद सूरि
  • उदा.--2..बिनै सबळ भुज अकळ संहस बळ, खळ दळ खेरू करण खग। 'गजपत' सुतन सनढ गढ गाहण, कोय न तौ सरखौ करग।--सादूळजी खिड़ियौ


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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