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सरगि
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
देखो 'स्वरग' (रू.भे.)
उदा.--
1..सुत नेह पंडु पहुंतै
सरगि
, पिंड राख।ै लालचपणै। रिध काज कसाथ कूंता रहिय, जिण हूंता धिक जीवणै।--रा.रू.
उदा.--
2..चहुवांण न औसर चूकता, एै जुगतौ जगि थयौ। बालोत 'पंचाइण' 'सोनगिरि' चढै सरगि ऊतरि गयौ।--गु.रू.बं.
उदा.--
3..सुख जिकै इंद्र भुगतै
सरगि
ऊतरि गयौ।--गु.रू.बं.
उदा.--
3..सुख जिकै इंद्र भुगतै
सरगि
, जिकै सुक्ख स्रब भोगवै।--गु.रू.बं.
उदा.--
4..पीय पासि पहुचउ मद मेल्ही, जाइसिइ
सरगि
मइं पगि ठेली। प्रीय आगलि किमइ जइ जाऊं, माहरा प्रीय तउ हउजं सुहाऊं।--सालिसूरि
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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