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सरम  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
फा.शर्म
1.लज्जा, शर्म। (डिं.को.)
  • उदा.--1..कूरम कहै अमर नर काया, पूळबा कारिण हुवा पीहौ। मोह बांधियां न जायै मरणि, सरम बांधिया मरै सोहौ।--सुजांणसिंघ जगन्नाथोत रौ गीत
  • उदा.--2..रजस्वला नारीह, कथा गोप किण सूं कहूं। समझौ हरि सारीह, सरम मरम री सांवरा।--रांमनाथ कवियौ
  • उदा.--3..खांड घी मांगता सरम को आवै नीं !घर में कमावू तौ थारै जैड़ौ मोल्यौ भरतार है। घी खांड सूं मूंणा भरी है।--फुलवाड़ी
2.इज्जात, प्रतिष्ठा।
  • उदा.--1..खत्रवट सरम सदा थां खौळे, औ हिदवांण वचावौ ओलै। समहर मौ दळ लियौ समेळा, भीम सह खूमांणा भेळा।--रा.रू.
  • उदा.--2..जांणै किसौ अजांण, तीन लोक तारण तरण। होवै द्रोपद हांण, सरम धरम री सांवरा।--रांमनाथ कवियौ
  • उदा.--2..सूर सरम संग्रहै, भरम छडे कमधज्जां। मेळ कियौ मेछ सूं, सूर सांमंत सकज्जां--रा.रू.
  • उदा.--3..कियां सनाह किसन कूंभावत, वधै हरख जिण कळह विसावत। आया निजर धणी चै एहा, सांमि धरम कुळ सरम सनेहा।--रा.रू.
3.संकोच। (सं.शर्मन्‌)
4.हर्ष, आनन्द। (डिं.को.)
5.घर, मकान।
6.सुख
7.विष्णु।
8.देखो 'स्रम' (रू.भे.)
रू.भे.
सरम्म।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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