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सरस  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1 तालाब, जलाशय।
2.सिरस का वृक्ष विशेष।
(रा.)
3.रीति, रस्म।
4.छप्पय छंदाक 35 वां भेद जिसमें 36 गुरु 80 लघु कुल 116 वर्ण या 152 मात्राएं होती है
5.एक छंद विशेष जिसके प्रत्येक चरण में क्रमश: तीनसगण एवं लघु गुरु सहित 11 वर्ण होते हैं।
6- एक मात्रिक छंद विशेष जिसके प्रत्येक चरण में 14 मात्राएं होती हैं एवं सात मात्राओं पर विश्राम होता है। इसे मोहणी भी कहते हैं।
वि.
1.रसपूर्ण, रसीला।
  • उदा.--परढीसि हवि पांचमा, अंग-सणउ अधिकार। सरस अनइ सरला वचन सारद आपैसार।--मा.कां.प्र.
2.समान, तुल्य।
  • उदा.--1..सिंघ सरस रायसिंघ रै, रहियौ झूझै रांम। आड़ौ सरवहियौ अछै, कळह तणौ धरि कांम।--हाला झाला रा कुण्डळिया
  • उदा.--2.. इन्द्र हू सरस राजस अमास, प्रिय जूथ सात सै मुर पचास।--सू.प्र.
  • उदा.--3..त्रीकम सरस लगावण ताळी, एकण ध्यान रहउ पग एक। रहण इसा जोगेन्द्र रहंता, आछी जुग वउळिया अनेक।--महादेव पारवती री वेलि
3.जोशपूर्ण, जोशीला।
  • उदा.--1..आया वसिया आपणी, ग्रखम थई वतीत। गुणचाळौ लागौ वरस, चाळौ सरस सजीत।--रा.रू.
  • उदा.--2..सयरस आप खग, तप सरसांणै। 'मुदफर' दळ भागा मुगलांणै।--सू.प्र.
4.प्रीति सहित, प्रेमपूर्ण।
  • उदा.--बोल नसपब सरस द्रढ बंधै, तुत पितु हूंत महा छळ संधै।--रा.रू.
5.पल्लवित, हरा-भरा।
  • उदा.--पतळी केळू कामंड़ी है, सरससुवांणी डाळियां। छांट छोल लै'रां लपेटां करड़ पटीली बाळियां।--दसदेव
6.किसी की तुलना में अपेक्षाकड़त अच्छा, बढ़कर।
  • उदा.--1..ऊससै कमंध लागै उरसि, राजा चढियौ वीरस। उण वार लोह मुंहगौ हुवौ, सोना ही हूँतासरस।--सू.प्र.
  • उदा.--2..असिवर कै तेज पुंज 'मधकर' कै पोतै, प्रांण तैं सरस पायौअवसांण जोतै।--रा.रू.
7.सुंदर, मनोहर।
  • उदा.--पतिव्रता नेह अपार सझि सोल सरस सिगार। बह कळा लछण बत्तीस, सझि आभरण खटतीस।--सू.प्र.
8.गीला, सजल।
9 स्वादिष्ट जायकेदार।
  • उदा.--1..बीडां दीजइ वलि वलि, सुदिमल सरस कपूरि। करइं जि आलस मतै सवि, केसवि कीजइ दूरि।--जयसेखर सूरि
  • उदा.--2..वडबोरां रा बोर, जूनौड़ा जामफळ है। छोकिया छिबजो, सरस ज्यूं इमीफळ है।--दसदेव
9.उत्तम, पवित्र।
  • उदा.--सरस पुरांणा बीच सुणी थी, किसन सुदांमा तणी कथ। दतदेतै साख्यात दिखावी, सौ विध नवसहंसा समथ।--बां.दा.
10.ताजा।
11 मधुर, मीठा
  • उदा.--धोळी सुघड़ बत्तीसी, जांणै पळकता मोती ई खराद उतर्‌या। सरस सुहांणी बोली, जांणै गळा सूं बोलां रै बदळै फूल निसर निसर नै विकसै।--फुलवाड़ी
12.भावपूर्ण।
13.श्रेष्ठ उत्कृष्ट
14.गुणदायक, लाभप्रद।
  • उदा.--धनि अीह गुर साचै गुर कूं धनि, जीणि बूंटी सरस बताई रे। वा बूंटी जा संतां साधी, अगि भई सितळाई रे।--वील्हौजी
15.आनन्दपूर्वक, प्रेम सहित।
  • उदा.--हुआ धमळमंगळ हरिख, वधिया नेह नवल्ल। सूर 'रतन' सतिआं सरस, मिळिया जाई महल्ल।--र. वचनिका
16.आनन्ददायक
  • उदा.--1..खचोथ चिहुँ दिस ऊनम्यौ, मेह रह्यौ झड़ लाय। प्रीतम प्यारी रंग रमै, सेझां सरस बणाय।--कुंवरसी सांखला री वारता
  • उदा.--2..सरवर चेलै मांकमणी, वादळ खेलै बीज। प्यारी खेली पीव सं, सरस सांवस री तीज।--कुंवरसी सांखला री बारता
17.बहुत अधिक, अत्यधिक।
  • उदा.--1..ताव अलाजां तरस, सरस रण चाव सलाजां। वणैं राजां बहिर, गहिर तोपां धण गाजां।--वं.भा.
  • उदा.--2..लखि वेणी नागणि लजी, धुकि धर मांहि धसंत। सखी अंग सोभा सरस, बिलखी देस बसंत।--सिवबक्स पाल्हावत
  • उदा.--3.. सात्युं सरस सनेह सूंख मोहल बुलाई पीव। कर पकड़ै सेझां लई, कांपण लागौ। जीव।--कुंवरसी सांखला री वारता
18.देखो 'सरस्वती' (रू.भे.)
  • उदा.--रमतां जगदीसर तणौ रहसि रस, मिथ्या वयण न तासु महै। सरसै युखमणी तणी सहचरी, कहिया थूं मैं तेम कहै।--वेनि
रू.भे.
सरस्स।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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