सं.पु.
1.आर्यागीति या खंधाण (स्कंधक) नामक गाहा का भेद विशेष। (पि.प्र.)
2.लालट पर सिदूर, कुकुमादि से की जाने वाली सीधी खड़ी रेखा, तिलक।
- उदा.--नलवटि करइ सरि सींदूर, ऊगटि केसर नइ कपूर। करणी वेलि अंबोड़ा भरइ, भमर गूंजारव सरवर करइ। (प्राचीन--फागु संग्रह) सं.स्त्री,
2.नदी, सरिता।
- उदा.--1..सरि--धारां बहुणा सकौ, नहचै नरकां जाय। चढ धारां चंद्रहास री, सूरा सरग सिधाय।--रैवतसिंह भाटी
- उदा.--2..त्रिगवी सरु रहावियउ, सरि गंगा आंणी। कउतिगु दाखीउ कउरबांह, पीउ पायु पांणी।--सालिभद्र सूरि
1.समान, तुल्य।
- उदा.--1..इ्रखै पित मात एरिया अवयव, विमळ विचार करै वीवाह। सुन्दर सूर सीळ कुळ करि सुध, नाह किसन सरि सूझै नाह।--वेलि.
- उदा.--2..मावीत्र म्रजाद मेटि बोलै मुखि, सुवरन कौ सिसुपाळ सरि। अति अंबु कोपि कुंवर ऊफणियौ, वरसाळू वाहळा वरि।--वेलि.
2.देखो 'सरीर' (रू.भे.)
- उदा.--मुरधर थया वधांमणा, गौ सरि खार विकार। खटरस भोजन बांमणां, घर पर मंगळाचार।--रा.रू.
3.देखो 'सर' (रू.भे.)
- उदा.--1..खुंपु भराविउ जाइ कुसमि कसतूरी सारी, सीमंतइ सिदूररेह मोती सरि सारी।--राजसेखर सूरि
- उदा.--2..तउ कुमर निच्छयं जणणि जांणेवि, ढणहण नसणि नीर झरंती। करिन तं वच्छ जं तुज्झ मण भावए, अज्छए गदगद सरि मणती।--एं.जै.का.सं.
- उदा.--3..राति सखि इणि ताल मइं, काइज कुरळी पंखि। उवै सरि हूं घटि आपणइ, बिहूं न मेळौ अखि।--ढो.मा.
- उदा.--4..हरिणाखी कठ अंतरिख हूंती, बिंब रूप प्रगटी बहिरि। कळ मोतियां सु सरि हरि कीरति, कठं सरी सरसती किरि।--वेलि.
- उदा.--.नरइंद 'अभौ' नवकोट नाथ सरि करण सतरि धरवर समाथ। अहमंद नयर खाटण अनूप, रस वीर प्रगट घट विकट रूप।----रा.रू.रू.भें. सरी, सरीस।