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सरु  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
क्रि.वि.
अ.शुरूअ
आरम्भ, शुरू, आरम्भ।
  • उदा.--1..बिना मिरच मुसालां रै ई बात कसरफ करुं, थनैमुसाला घणा ई लगावणा आवै।--फुलवाड़ी
  • उदा.--2..सोवलाल सांवण री तीज सूं पैली ही सासरै आ बैठ्‌यौ मालम पड़्‌यौ जद घर में गीत सरु करुं, टथनै मुसाला घणा ई लगावणा आवै।--फुलवाड़ी
  • उदा.--2..सोवनलाल सांवण री तीज सूं पैली ही सासरै आ बैठ्‌यौ मामल पड़्‌ययौ जद घर मैं गीत सरु हुआ।--दसदोख
  • उदा.--3..सुणि एम कीध नौबत सरु इम जबाब लिखिया उतर।--सू.प्र.
  • उदा.--4..हांकरतां दौड़ सरु व्हैगी।--अमरचूंनड़ी
1.वज्र।
2.तीर, बांण।
3.अस्त्र, शस्त्र।
4.क्रोध, गुस्सा।
5.एक देव गंधर्व का नाम। सं.सत्रभ (सं.शरु:)
6.तलवार की मूठ। वि.--
1.वास्तविक, यथार्थ, सही।
  • उदा.--हाराज अभै मंडोवरै, सकळ लाज परखै सरु द्दढ बात नेम लखि रक्खियौ, खूंद थांन 'खेमंगरूं'--रा.रू.
2.देखो 'सरी' (रू.भे.)
  • उदा.--'पदमसिंघजी, मा'राज तौ दातार है कोऊ निरधन जाय हाथ मांडै तिणनूं निहाल करै जौ तूं जातौ सरू।--रा.रू.
2.देखो 'सरी' (रू.भे.)
  • उदा.--'पदमसिंघंजी' मा'राज तौ दातार है कोऊ निरणधन जाय हाथ मांडै तिणनूं निहाल करै जौ तूं जातौ सरू।--द.दा.
3.देखो 'सारु' (रू.भे.)
  • उदा.--1..मुदै 'अमर' 'खेमगरु', जिकण सरु सब ज्यास। वात करण सुरताण सूं अरि घरि करण अज्यास।--रा.रू.
  • उदा.--2..इसड़ा पंचवीस किराड़ अढंगा, झुझ सरु रीता जीतसा।--र.रू.
रू.भे.
सिरु, सुरु, सुरू।
सं.पु.(सं.शरु)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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