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सवाई  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
1.पुत्र, बेटा।
  • उदा.--'दूदा' हरौ 'विसल' वरदाई, सरहर 'सूरजमाल' सवाई। चांपै सकतावत कळि चाळा 'अभै' जतन आया आझाळा।--रा.रू.
2.जयपुर महाराजाओं की उपाधि विशेष।
3.किसानों को बुवाई के लिए अनाज देने की वह रीति या प्रथा जिसमें फसल पकने पर सवाया अनाज वापिस कर के रूप में देते हैं, ऊप। वि.--
1.एक और चतुर्थांश के योग के समान, सवाया।
  • उदा.--1..अघोरी बाबा रौ अनूठो गसकौ देख दोनूं जणां इचरज सूं जोवण लागा। जटा डील सूं ई सवाई लांबी। जमीं माथै टिरै।--फुलवाड़ी
  • उदा.--2..लियौ न देही फेरि लिखावै, सीरि दूंणी सयवाइ। वांकी कदै न भाजै भूख, दाळद की बोह मुकळाई।--ऊदौजी नैण
2.बढ़कर, विशेष।
  • उदा.--1..सीकोतरि गण हूंत सवाई हूवै जियां हथझाल हवाई।--सू.प्र.
  • उदा.--2..नगर सेठ मन ई मन माळा फेरण लागा कै दीवांण जी मैं वां सूं ई सवाई बीतै।--फुलवाड़ी
  • उदा.--3..रांणी अेक कंठी देखनै दूजी देखै--अेक अेक सू सवाई। इचरज अर हरख रौ छेह नीं रह्यौ।--फुलवाड़ी
  • उदा.--4..जिकण नांम जैसींघ सवाई सोहियौ, निज द्विज रूप नरांण देख जोतिख दियौ। पाळक प्रजा प्रथीप जनमतांई जांणियौ, त्रप रूपिया नव लाख करजमाफी कियौ।--सिवबख्स पाल्हावत
3.अधिक, विशेष।
  • उदा.--1..बांवळियां रै सोनल वरणा पीळा फूंलां सूं गवाड़ी री छिब सवाइ बधगी ही।--फुलवाड़ी
  • उदा.--2..आसकरण धड़ै मांझी नखत ऊधरै, सांगड़ौ चैन बाजी सवाई। कलोड़ा कपूतां तणां थट केवटै, भलोड़ा सपूतां तणा भाइ।--चैनकरण सांद रौ गीत
रू.भे.
सिवाई।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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