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सहर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
अ.शहर
1.मनुष्यों की वह बस्ती जो कस्बे से बड़ी हो तथा जहाँ पक्की इमारतें और बड़ा बाजार हो, नगर। (डिं.को; ह.नां.मा.)
  • उदा.--1..सहर अजैपुर जोधपुर, सोबै राख जवन्न। पूठ अकब्बर वाहरां थयौ विखधर मन्न।--रा.रू.
  • उदा.--2..हुंकळै तुरां धैधिंगरां हारहर, सहर पाधर करण काज साका। पाखरां घरर 'गजबंध' रा पाटपत, थरर पढपत गढां पांण थाका।--खेतसी लाळस
रू.भे.
सहैर, सैर, सै'र। अल्पा;--सेरड़ौ। (अ.)
2.प्रात:काल, प्रभाव।
3.देखो 'सेहर' (रू.भे.)
  • उदा.--करै राड़ड अध्रयांमणी 'अभै' जोगी कियां, जकैनह सांमणी तीज जांणैं। दमकती दांमणी देख सहरां दिसा, याद कर कांमणी सोच आंणै।--बखतौ खिड़ियौ


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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