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सहेलड़ी, सहेली
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.सखी, संगनि। (अ.मा.)
उदा.--
1..सात
सहेल्यां
, रै झूलरै अै पणिहारी अै लौ, पांणीडड़ै नै चाली रे तळाव वाला जौ--लो.गी.
उदा.--
2..नणद भोजाई सरवर म्है गयी, सात सहेली म्हारै साथ।--लो.गी.
उदा.--
3..संग री
सहेली
म्हारी रचणी लगावै, कंइयां लगा्ऊं सायेवां !थारै रे बिना ? तीजां आयी ढोलौ नहीं आयौ, पल पल झूरूं मेरा सायेबा ! थारै रे बिना।--लो.गी.
उदा.--
4..दोळी फिरी दसेक कुसुम कर कांकमठी, जोवत गहळी जीव
सहेली
सामठी। निज निज मुख सां नांम कहावत कंथ रौ, बढि इम हास विलास मदन महमंत रौ।--विबख्स पाल्हावत
उदा.--
5..सावण री बड़ तीज, रुखमण झझूलण चाली ओ। और
सहेल्या
झूलै इरा-तीरा रुखमण बीच पधारी औ।--लो.गी.
उदा.--
6..बिदर
सहेल्यां
बीच मैं, हंस हंस मारै होड। चेली सूं चूकै नहीं मोकौ लागां मोड।--ऊ.का.
2.अनुचरी, दासी।
उदा.--
सांखलां कही, वैहल छोड़ देचौ, आफै चली आसी। तर खरळां बहलवांन नु उतार रथ ऊपर
सहेली
नूं चाढि वहीर कीवी वहलां भारवरदारी सारी रथ उरै पेढै लगाय दीया। ऊमा देखण लागां।--कुंवरसी सांखला री वारता
रू.भे.
सहीली।
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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