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सांग  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
सं.
1.अंगों व अवयवों सहित।
2.परिपूर्ण। सं.पु.--
1.हविधनि वंशीय गय नरेशक का एक नाम। सं.स्त्री.(सं.शक्ति)
2.भाले से मिलता-जुलता एक प्रकार का शस्त्र विशेष जो फेंक कर काम में लाया जाता है, शक्ति।(ना.डिं.को.)
3.एक प्रकार का भाला विशेष जो 6 फुट 4 इंच लंबा होता है यह जोड़ रहित शुद्ध फौलाद का बना होता है। इसके ऊपरी भाग का नुकीला हिस्सा 9 इंच लम्बा व 1-1/2 इंच होता है। (डिं.को.)
  • उदा.--1..औरां रा कर औरठै, पड़िया पाड़ै बांग। जीव पै ऊभा जठै, सखी धणी री सांग।--वी.स.
  • उदा.--2..इतरै इकौ घोड़ौ हजार पांच सुं चढीयौ आयौ। हाथ के सांग मण एकरी लीयां थकां आंण पोहतौ।--रा.सा.सं.
4.लोहे की मोटी छड़ जो भार उठाने या पत्थर की भज्ञरी पट्टी को उथलने के काम आती है।
  • उदा.--सांग हूत सरकार नर, भाटौ सौ मण भार। हस्त किम नह डोलणौ, सांग लेय सिरदार।--रैवतसिंह भाटी
5.एक प्रकार का शस्त्र विशेष।--(अ.मा.)
6.देखो 'स्वाँग' (रू.भे.)
  • उदा.--1..रावळियां रांमत रांमत समै, मावड़ियौ लै मांग। तौ रतना पातर तणौ, सखरौ लावै सांग।--बां.दा.
  • उदा.--2..जिकै अलवेला ठाकुर जुवांन तिकै केसरिया वागा पहिरै बैठा था त्यांह वेगिदै सथलां ही बगतर पहिर्‌या। ताकौ द्रस्टांत जैसे बहुरूपिया सांग बदळै। त्यै। सें सांग बदळि गया।--वेलि टी.अल्पा;
रू.भे.
सांगड़ौ। क्रि.प्र.--करणौ, बणणौ, सजणौ।
  • मुहावरा--1.सांग करना=फितूर करना, पाखंड करना।
  • मुहावरा--2.सांग बणाणौ=रूप बनाना, मजाक उड़ाना।
  • मुहावरा--3.सांग लावणौ=
1.धोखा देने के लिए कोई रूप धारण करना।
2.मनोरंजन हेतु किसी की नकल करना।
रू.भे.
संग, संगि, सांगि, सांगी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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