सं.पु.
सं.श्रावण
1.हिन्दी वर्ष का पाँचवां मास जो आषाढ मास के बाद तथा भाद्रपद के पहले आता है। (डिं.को.)
- उदा.--1..सांवण आयौ सायबा, बांधौ पाग सुरंग। घर बैठा राजस करौ घास चरेला तुरंग।--अज्ञात
- उदा.--2..सांवण आयौ सायबा, लुळ लुळ बरसै लूर। गोख उडीकै गोरड़ी, जाबर में भरपूर।--नारायणसिंह सांदू
- मुहावरा--सांवण रा आंधा नै हर्यौ ई हर्यौ सूझै=सावन में अंधे हुअु व्यक्ति को सदा हरा ही हरा दिखाई देता है। (मूर्ख एवं अनुभवहीन व्यक्तियों के लिए)
3.वर्षा ऋृतु में गाये जाने वाले लोकगीत।
3.वर्षा ऋृतु में गाये जाने वाले लोकगीत।
- उदा.--'जसवंत' नै गिणगौर ज्यू, मेलै तरीथ मंझार आया सांवण गावता, सांभरिया सिरदार।--दलौ महङू
रू.भे.
सवण, सांमण, सांवणि, सांवन, सावण, स्रांमण, स्रांवण, स्रावण। अल्पा;--सांवणियौ, सावणियौ।
4.देखो 'सुगन' (रू.भे.)
- उदा.--1..आथण रौ पोहर 1 दिन लै चालीया भुहरी कनै आवतां सांवण री पाल हुई। जेठ सुद 7 सोमवार जोधपुर आय स्रीकंवरजी रैां वै लागा।--नैणसी
- उदा.--2..चौबिस तौ आपरा राजपूत, पचवीसमौं राघवदै नै छबीसमा आप चढिया। तिके आछा सांवण मांग्या। तरै हिरण मालाळा हुआ।--जैसतसी उदावत री बात
- उदा.--3..रजपूतां कह्यौ, वाह वाह, निपट मोटी विचारीसांवण सखरा लेनैपधारौ नै स्रीमाताजी करै तौ पठांणां नै भूंडा दिखाय नै धोड़िया ल्यावां नै खुरी करां।--जखड़ै मुखड़ै भाटी री बात