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साग  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.शाक
1.वह पौधा जिसकी पत्ती, जड़ डंठल, फल-फूल आदि पका कर भोजन के साथ खाने के काम लीजती हो, सब्जी, शाक। (उ.र.)
  • उदा.--1..रसोड़ा मैं धापू एकली बेठी साग बनारती ही, उण नै पूछ्‌यौ तौ जांण पड़ी, खनला कमरा मैं सूतौ व्हैला।--अमरचूंनड़ी
  • उदा.--2..सपत दसह भोजन घ्रत सनिगध, साग छतीसां रांन वांन सध।--सू.प्र.
2.आग पर भून या पकाकर भोजन के साथ खाने योग्य बनाई हुई बड़ी, पापड़, दाल आदि सूखी सब्जी।
  • उदा.--ऊपर सूं हैजी-मोगर अर प्याज पापड़ां रा साग ल्हसण रै लाल झोळ मैं फलकां री मोळ मेटण जीमै है।--दसदोख
3.सागवान का पेड़। (अ.मा.)
  • उदा.--रिक्ष तेड़ौ व्रक्ष आंणौ, सयल भार अढार। प्रथम पीपळ साग सीसमइ, आंमली अधिकार।--रुकमणी मंगळ
4.देववृक्ष। (अ.मा.)
रू.भे.
साक।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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