सं.स्त्री.
सं.सर्जिका
1.जरासे से मिलता-जुलता कुछ बड़ा और बिना कांटों का क्षुप या पौधा विशेष।
- उदा.--जिकौ थै किसा नहीं जांणौ हौ फोग है जिती धरती थांरी है, अरु साजी वा लई है जिती धरती म्हारी है, तथा इण सोतर री धरती मैं आगै हुवा है तिणरा नांम कह्या।--द.दा.
2.एक प्रकार का क्षार विशेष जो अधिकतर पापड़बनाने के काम आता है एवं यह औषधि में भी काम आता है। वि.वि.--इसका एक क्षुप होता है जिसकी टहनियां कोमलहोती है, पत्ते छोटे-छोटे और तिकोने होते हैं। इसी क्षुप के डंठलों व पत्तों को एक खड्डे में जला कर दबा दिया जाता है इससे जो कोयले बनते हैं वह सज्जी या साजी होती है। इस सज्जी को जमीन में बनी किसी कुंडी या पात्र में डाल कर गर्म किया जाता है। इससे सफेद रसनुमा एक तरल पदार्थ तैयार हो जाता है जिसे उक्त कुंडी या पात्र में सूराख करकेकिसी दूसरे पात्र में ले लिया जाता है तदन्तर जम कर जो क्षार तैयार होता है उसे चौवा साजी कहते हैं। इसको पापड़बनाने के काम में लिया जाता है। यह साजी कपड़े धोने या साबुन बनाने के काम भी आती है। मतान्तर से--शालिग्राम निघंटु में साजी तैयार करने की अन्य विधि बताई है उसके अनुसार--मालाबार प्रान्त में वृक्षों के पंचांगों के टुकड़े करके एक बदी खाई में भर दिये जाते हैं और फिर उसमें आग लगा दी जाती है। बाद में वह जलकर स्वतः जम जाते हैं और साजी या खारी तैयार हो जाती है।