सं.स्त्री.
1.बारूद की सुरंग।
- उदा.--1..संमत 1618 रा फागण बद 7 कोट घेरीयौ छै। भुरज एक पिण साबात था उडीयौ छै। सु राठौड़ देवीदास मुगळ था बात करनै निसरीया छै।--नैणसी
- उदा.--2..भूरज नूं साबात लागी तरै सुणीजै छै, तीन जणा उडिया। तिणां तरवार उडतां काढी, सु तिकां मैं एक उरजन।--नैणसी
- उदा.--3..थटा काळ सी डंकाळ सी तोपां यौ साबात धक्की, मैगळां है खुरां जम्मी मचक्की प्रमांण। वीर चंडां लीधा साथ चंड़का किलक्की बक्की, आंमेरनाथ री सेना यौं हक्की आरांण।--सिवदांन कवियौ
2.बारूद का भण्डार।
- उदा.--जुड़ै थडां जाडावाळी धोम जाळा री साबात जागी, खंडां आडावाळा री लागी हाला री खुलास। जोम गाडावाळी प्रळय काळा री उनागी जठै, वागी हाडावाळी नराताळी री बांणास।--दुरगादत्त बारहठ
3.शत्रुओं द्वारा किले की दीवार तक पहुँचने हेतु किले की दीवार से भी ऊंचा, किन्तु ढका हुआ, बनाया गया एक प्रकार का मार्ग विशेष, जिसमें किले के भीतर वालों की मार से सुरक्षित रह कर हमलेवार किले के पास पहुँच जाते हैं। वि.वि.--चित्तोड़-विजय के समय अकबर ने ऐसे ही दो रास्ते बनवाये थे जो बादशाही डेरे के सामने थे। ये रास्ते इतने चौड़े थे कि उनमें दो हाथी व दो घोड़े साथ-साथ चले जा सकते थे एवं ऊंचे इतने थे कि हाथी पर बैठा हुआ आदमी भाला खड़ा किये इसके अन्दर से जा सकता था। साबात बनाते समय राणा के सात-आठ हजार सैनिकों व कई गोलंदाजों ने उन पर हमला किया था। कारीगरों की सुरक्षा हेतु गाय-भैंस के मोटे चमड़े की छावन थी तो भी वे इतने मरे कि ईंटों एवं पत्थरों की जगह शवों को चुना गया था। बादशाह ने कारीगरों को प्रचुर मात्रा में मजदूरी दी। किसी से किसी प्रकार की बेगार नहीं ली गई बल्कि मजदूरों में रुपयों पैसों की वर्षा कर दी। एक रास्ता किले की दीवार तक पहुँच गया और वह इतना ऊंचा था कि दीवार उससे नीचे दिखाई देती थी। इस रास्ते की चमड़े से बनी छत पर बादशाह की बैठक थी जिस पर बैठ कर बादशाह अपने वीरों का करतब देखता एवं स्वयं भी बन्दूक लेकर बैठता था एवं युद्ध में भाग लेता ता। इधर सुरंग लगाई जा रही थी और किले की दीवारों के पत्थर काट-काट कर सेंध लग रही थी। किले के दोनों ओर पाँच हजार कारीगर व खातियों द्वारा साबात बनाये जा रहे थे। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि साबात एक प्रकार का दीवार मार्ग था जो किले से गोली की मार की दूरी पर खड़ी की जाती थी और उसके तखते बिना कमाये चमड़े से ढके होते थे। उनकी रक्षा में किले तक कूचा सा बन जाता था। फिर दीवारों को तोपों से उड़ाते हैं और सेंध लगने पर बहादुर भीतर घुस जाते हैं। मतान्तर से यह ऊंची टेकरी का सा भी होता था जिस पर से किले पर गरगज (ऊंचे स्थान) की तरह मार की जा सकती थी।