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सिरदार
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
देखो 'सरदार' (रू.भे.)
उदा.--
1..स्वरण रखै जै ब्रव सकै, दै किम पहरेदार। सिर राखै
सिरदार
नहिं, सिर दै सौ सिरदार।--रैवतसिंह भाटी
उदा.--
2..सायब सुघड़ सुजांण, रसक रिझवार हो। हो म्हारा
सिरदार
, हिया रा हार हो।--र.हमीर
उदा.--
3..सेवट एक दिन तौ सगळां नै मरणौ इज है, परण
सिरदारां
री मौत रौ तौ कीं पतियारौ इज नीं।--फुलवाड़ी
उदा.--
4..रजपूती रैई नहीं, पूगी समदां पार। पातरियां रा पाद मैं, सीज गया
सिरदार
।--ऊ.का.
उदा.--
5..साथ रै लोक नुं कहण लागौ--जौ वीहा कुंवरजी रै आगै ही घणा छै पिण समझदार दातार तौ लाडीजी सारखौ कोई नहीं बड़ी
सिरदार
जांणीयां विसेख।--कुंवरसी सांखला री वारता
उदा.--
6..आपणी बारली बरसाळी मैं एक ताजीमी
सिरदार
बैठांण परा'र आयौ हूं।--दसदोख
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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