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सीळ, सील  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.शील
1.सद्‌ आचरण, सदाचार।
  • उदा.--1..चकडोळ लगै इणि भांति सुं चाळी, मति तै बाखांणण न मूं। सखी समूह मांहि इम स्यांमा, सीळ आवरित लाज सूं।--वेलि.
  • उदा.--2..स्यांम कै सहाय मुरधर कै किंवाड़। पिंड कै प्रचंड पौरस के पहाड़। दातार सूर सील कै निवास। दीन कै सहाय द्विज गऊ कै दास।....--सू.प्र.
2.नैष्टिक-ब्रह्मचर्य।
  • उदा.--1..हनूमांन नैं सीळ मई हुय, चूक न द्रस्टि चलाई। मार्‌यौ मांन अुसर कौ गरज्यौ, जब ही लंक जराई।--ऊ.का.
  • उदा.--2..सील का गंगेव भारथ का पाथ, नरूं का जंबहरी जोधांण का नाथ।--सू.प्र.
  • उदा.--3..कोटन रिसी सील कै कारण, परम मुक्ति जिन पाई। ऊमरदांन अब सील अराधत, परहर नार पराई।--ऊ.का.
  • उदा.--4..धुर तैं सील फरस धर धार्‌यौ, विसय विकार विहाई। क्षत्रिय मार अवनि निक्षत्री, वार इकीस बनाई।--ऊ.का.
3.संयम।
  • उदा.--1..कांम रिपू कूं सीलसूं मार्‌या, लोभ कूं मार्‌या त्याग। क्रोध कूं आय संतोख झपेट्‌या, मोह कूं लै वैराग।--सुखरांमजी महाराज
  • उदा.--2..साध न आंणै आपदा, सील संतोसी थाय। हरीया राग न धेसता, सब सुं एक समाय।--अनुभववांणी
4.पतिव्रत धर्म, पातिव्रत्य।
  • उदा.--1..इम धायां उच्चरै, सुणौ बायां सतवंती। उभै बंस ऊजळी, सील निरमळी सकत्ती।--रा.रू.
  • उदा.--2..ऊजळीदंती आभ, मनेतण चीतालंकी। नाजकड़ी पदमणी, सीळ सतवंती संकी।--नारी सईकड़ौ
5.लज्जा, संकोच, शर्म।
  • उदा.--सोळै आभूसण साजिया, सुभ लछसील सुभाव। भलां पधारी भट्टण्यां, पलकां देती पाव।--रमण प्रकास
6.चरित्र, आचरण, चाल-चलन, नैतिक स्तर।
  • उदा.--सील प्रताप सकळ ही संपत अंगरेजा घर आई।--ऊ.का.
7.स्वभाव, आदत, वान। (अ.मा., डिं.को.ह.नां.मा.)
8.गुण, लक्षण।
9.सम्मान, आदर, झुकाव।
10.अनुशासन।
  • उदा.--1..सील संवार रूप री सेना, लेती फिरत लराई। करकै फतै तुरक लोकन की, हिम्मत खूब हराई।--ऊ.का.
  • उदा.--2..सील सहित सिवराज सितारै, खोस लूट धर खाई।--ऊ.का.
1.आर्द्रता, नमी।
  • उदा.--म्हाराज तळाव कोट रै नेड़ौ घणौ है। कोट री नींव मैं सील जावसी।--नैणसी रौ साकौ
12.गाय के ऋतुमति की अवस्था (अं.)
13.छाप, मुहर।
14.वादा, वचन, प्रतिज्ञा।
  • उदा.--1..तिरै हालां नै भम माहोमांही सील कील कियौ। देवी आसापुरा विचै दीवी।--नैणसी
  • उदा.--2..सु फौज राव कला री ऊभी थी। तिण मांहै सातां असवारां सुं आय पड़ीयौ। इणा मार लीयौ। सूली दीयौ। तरै मुगलां रा परधांन आय वरस दिन रा सील कोल किया।--राव चंद्रसेन री बात
1.प्रवृत्त, तत्पर।
2.स्वाभावयुक्त।
3.धैर्य।
4.विनम्र, शिष्ट।
5.पवित्र, निर्मल।
  • उदा.--गति गंगा मति गोमती, सीता सील सुभाय। महिलां सिरहर मारूवी, अवर न दूजी काय।--ढो.मा.
रू.भे.
सियल।
सं.स्त्री.(सं.शीतल)
वि.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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