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सु  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.शु
1.पल। (एका.)
2.पलास (एका.)
3.चांद, चंद्रमा। (एका.)
4.शुक, तोता। (एका.)
5.पत्थर, पाषाण। (एका.)
6.कैलाश पर्वत। (एका.) सं.पु.--
7.घोड़ा, अश्व। (एका.)
8.नख, नाखून। (एका.)
9.गधा। (एका.)
10.समूह, झुण्ड। (एका.)
11.मोर की तेज आवाज, कौहक। (एका.) (सं.सु.)
12.रवि, सूर्य।
13.ध्वनि, आवाज।
14.कुल्हाड़ी, कुठार।
15.छेदन।
16.परशु।
17.सुथार, बढ़ई। (एका.)
18.सुन्दरता, खूबसूरती।
19.उन्नति, प्रगति।
20.आनन्द, प्रसन्नता।
21.समृद्धि।
22.पूजा, अर्चना।
23.कष्ट, तकलीफ।
24.अनुमति, आज्ञा, सहमति। वि.--
1.अच्छा, भला।
2.अच्छा, बढ़िया।
3.श्रेष्ठ, सर्वश्रेष्ठ।
4.उत्तम, पवित्र।
5.सुंदर, खूबसूरत।
6.सहज, सरल, आसान।
7.उचित, उपयुक्त।
8.अधिक, अत्यधिक, खूब।
  • उदा.--पाछइ प्रोहित राखियउ, तेड़्‌या मांगणहार। जै भेक गीतां तणा, बात करइ सु विचार।--ढो.मा.
1.स्व, अपना।
  • उदा.--बळिबंध समरथि रथ लै बैसारि, स्यांमा कर साहै सु करि। बाहर रै वाहर कोइै वर, हरि हरिणाखी जाइ हरि।--वेलि.
2.उन, उन्हें, उन्होंने।
  • उदा.--1..धरती जेहा भरखसा, नमणा जेहि केळि। मज्जीठां जिम रच्चणां, दई सु सज्जण मेळि।--ढो.मा.
  • उदा.--2..मारूराव 'मुकन्न' रै, खीची साथ 'मुकन्न'। सु तौ अजैगढ खांन सूं, मिळ पूछिया प्रसन्न।--रा.रू.
3.वह, वे, सो।
  • उदा.--सैसव सु जु सिसिर वितीत थयौ सहु, गुण गति मति अति गिणि। आप तणौ परिग्रह लै आयौ, तरुणापौ रितुराउ तिणि।--वेलि.
  • उदा.--2..रावळ दूदौ जसहड़ रौ। जसहड़ पाल्हण रौ। पाल्हण काल्हण रौ पोतरौ। तिण आयनै जेसळमेर सूनौ पड़ियौ हुतौ सु लै नै टीकै बैठौ। ब्ररस 10 दिन 7 राज कियौ।--नैणसी
  • उदा.--3..आरोपित हार घणौ थियौ अंतर, अरस्थळ कुंभस्थळ आज। सु जु मोती लहि न लहै सोभा, रज तिणि सिर नांखै गजराज।--वेलि.
  • उदा.--4..सखी सु सज्जण आविया, हुंता मुझ्झ हियाह। सूका था सू पाल्हव्या, पाल्हविया।--ढो.मा.
1.भली-भाँति, अच्छी तरह।
2.सरलतापूर्वक, सरलता से।
3.इसलिए।
  • उदा.--तरै चीबै सांवतसी कह्यौ आहेडिए सूअर दोय हेरिया था तठै गयौ, हमार आवै छै। सुं यूं करतां आथण हुवौ, तरै रांणै वळै मांनसिंघ नुं याद कीयौ।--नैणसी
4.ही।
  • उदा.--1..इणि परि ऊमा देवड़ी, जांणी मारूवत। सु प्रभाति कहिबा भणी, पिंगळ पासि पहुत्त।--ढो.मा.
  • उदा.--2..सैसव तनि सुखपति जोवण न जाग्रति, वेस सधि सुहिणा सु वरि। हिव पळ-पळ चढतौ जि होइसै, प्रथम ग्यांन एहवी परि।--वेलि.
  • उदा.--3..वधिया तनि सरवरि वेस वधंती, जोवण तणौ तणौ जळ जोर। कांमणि करग सु बांण कांम रा, दोर सु वरुण तणा किरि डोर।--वेलि.
1.पादपूरक वर्ण।
  • उदा.--1..इहां सु पंजर मन उहां, जय जांणइला लोइ। नयणा आडा वींझ वन, मनह न आडउ कोइ।--ढो.मा.
  • उदा.--2..थळ भूरा, वन झंखरा, नहीं सु चंपउ जाइ। गुणै सुगंधी मारवी, महकी सहु वणराइ।--ढो.मा.
रू.भे.
सू।
2.देखो 'सु' (एका.)
3.देखो 'इसु' (रू.भे.)
  • उदा.--इसिउं विमासी मनि पारथ निद्रा, मेल्हि नरेंद्रै सु सम्रत्यमुद्रा। निद्रा ति घूमिइं हथियार छांडइ, कोई किही सिउं नीय झूझ मांडइ।--सालिसूरि
सर्व.--
क्रि.वि.
एक अव्यय शब्द जो संज्ञावाची शब्दों के साथ कर्मधार्‌य और बहुव्रीहि समासों में एवं विशेषणवाची व क्रिया विशेषणवाची शब्दों के साथ व्यवहृत किया जाता है। इसके निम्नांकित अर्थ होते हैं--
अव्य.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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