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सुख  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.मन की वह उत्तम ता प्रिय अनुभूति, जिसमें वह मानसिक व शारीरिक कष्टों से मुक्त रहकर उत्साहित व संतुष्ट रहता है और इस दशा के बराबर बने रहने की आशा करता है। शांति, आराम, दु:ख का विपर्याय। (डिं.को.)
  • उदा.--1..सोळैई थांन अचळ इंद्रीसुर, अति सुख उदै कियौ अंतरि उर। विसन ब्रह्म सिव अरक बखांणौ, जळपति ससि दिस मारुत जांणौ।--रा.रू.
  • उदा.--2..सौय सुहागिन सुंदरि, सुख सागर भरतार। दूजी दुखी दुहागनी, हरीया बिन इकतार।--अनुभववांणी
  • उदा.--3..सुख लाधै केलि स्यांम स्यांमा संगि, सखिए मन रखिए संघट। चौकि चौकि घपरि चित्रसाळी, हुइ रहियौ कहकहाहट।--वेलि.
  • मुहावरा--1.सुख आणौ=सुख के दिन आना, आराम मिलना।
  • मुहावरा--2.सु करणौ=आनन्द करना, मौज-मस्ती करनी, क्रीड़ा करना, रति क्रीड़ास करना।
  • मुहावरा--3.सुख खोणौ-आफ़त, परेशानी या कोई झंझट गले लगाना।
  • मुहावरा--4.सुख पाणौ-आराम पाना, किसी कार्य में कम परेशानी या पश्रिम होना।
  • मुहावरा--5.सुख मांणणौ=मौज मस्ती करना, प्रसन्न रहना, आनन्द करना।
  • मुहावरा--6.सुख री नींद सोणौ=चैन से दिन काटना, निश्चित होकर रहना।
  • मुहावरा--7.सुख लूटणौ=आनन्द करना, सुख-साधनों का उपभोग करना।
  • मुहावरा--8.सुख व्हैणौ=कोई परेशानी या कष्ट समाप्त हो जाना, सुख होना।
2.हर्ष, खुशी, आनन्द।
  • उदा.--1..तरसि पधार हुआ त्यायारी, 'धीर' तणौ आयौ व्रतधारी। रांणी जळती 'ऊदै' राखी, सुख तै जांणणहार सुजि।--वेलि.
3.भय, चिन्ता या कष्टों से मुक्तावस्था, निश्चिंतता, चैन, शांति, आराम।
  • उदा.--1..इसी भांति भरमल अरजां कर रजाबंध कर रीझाय लीयौ। सुख सुं पोढ रह्या।--कुंवरसी सांखला री वारता
  • उदा.--2..सूतौ थाहर नींद सुख, सादूळौ बळवंत। वन कांठै मारग वहै, पग पग हौल पड़ंत।--बां.दा.
4.प्रेम, प्रीति, स्नेह। (अ.मा.; ह.नां.मा.)
  • उदा.--मिळिया वंका राठवड़, चित हित दाख वचाव। सुख जाडौ कीधौ सगै, रीधौ हाडौ राव।--रा.रू.
5.दोस्ती, मित्रता।
  • उदा.--राव वीरमदधै दूदावत धरती बाहिरौ काढीयौ थौ सुं सहसै नै राठौड़ वेरसी रांणौ अखैराजोत रै सुख हुतौ।--राव मालदेव री बात
6.सुविधा, आराम।
  • उदा.--उर त्रास पार न वार, चित डरत करता विचार। जग धिनी पंखी जात, सुख पंख जेण सु गात।--रा.रू.
7.समृद्धि, सम्पन्नता।
  • उदा.--1..सुख संपत्ति कै सब कोई साथी, विपति परै सब सटकै।--मीरां
  • उदा.--2..पदम पराग कदम रज पावन, पाग धरत छत्रपत्ती। प्रापत होत भोत सुख संपति, व्यापत नांहि विपत्ति।--मे.म.
8.कल्याण, मंगल। (अनेका.)
9.थ्यावस, तसल्ली, ढाढस।
  • उदा.--1..आयां मन विगसै नहीं, गयां न होव। दुख। जनहरीया हरि भगति कौ, कैंसैं उपजै सुख।--अनुभववांणी
  • उदा.--2..रथ थंभि सारथी विप्र छंडि रथ, औ पुर हरि बोलिया इम। आयौ कहि कहि नांम अम्हीणौ, जा सुख दै स्यांमा नै जिम।--वेलि.
10.सन्तोख, सब्र।
  • उदा.--आसा तिसना छाडि, निरासा हुय रहै। हरिहां दास कहै हरिरांम, सांम सुख जब लहै।--अनुभववांणी
11.उमंग, उत्साह।
  • उदा.--सुरख सरोरुह खंड लियां सुख साजही। कै अरुणोदय कांति रही मिळि राजही।--बां.दा.
12.निरोगता, स्वस्थता, आरोग्यता।
13.खामोशी, शांति।
14.सरलता, आसानी।
15.संधि, सुलह।
16.उपयुक्त, ठीक, उचित।
17.जल, पानी। (अनेका.)
18.स्वर्ग। वि.--
1.प्रिय, मधुर, मनोहर।
2.धर्मात्मा, पुण्यात्मा।
3.सरल, करने योग्य।
4.आरामदायक।
  • उदा.--वल्ली तसु बीज भागवत वायौ, महि थांणौ प्रिथुदास मुख। सूळ ताल जड़ अरथ मंडहै, सुथिर करणि चढ़ि छांह सुख।--वेलि.
5.भला, अच्छा। अव्य.--
1.सहर्ष, आनन्द से।
2.आराम से।
3.आसानी से।
4.राजी या रजामंदी से।
5.चुपचाप, शांति से।
रू.भे.
सुक, सुक्ख, सुख्ख, सूख।
अल्पा.
सुक्खौ, सुखड़ौ।
पर्याय.--आनन्द, निरब्रती, मोद। क्रि.प्र.--आणौ, करणौ, दैणौ, पाणौ, भोगणौ, मिळणौ, व्हैणौ।
(सं.सुखम्‌)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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