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सुगंद, सुगंध  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.सुगंध:
1.अच्छी और प्रिय गंध, महक़, खुशबू।
  • उदा.--1..मोनूं सुगंध सोनूं मिळ्‌या, बळिहारी इण बात री। साखात सकति 'इंदर' सुणैं, महिमा 'करनळ' मात री।--मे.म.
  • उदा.--2..नाहर जौ गाजिस नहीं, ऐ जग बहता ईख। सर सर कमळ सुगंध री, भमर न मांगिस भीख।--बां.दा.
2.गंधक। (सं.सुगंधं)
3.चंदन।
4.जीरा।
5.नीलकमल।
6.गंधेज़ नामक घास, गन्ध-तृण।
7.खुशबूदार चीज़।
8.चना।
9.मरुवा।
10.माधवी-लता।
11.सफ़ेद ज्वार।
12.केवड़ा।
13.राल।
14.व्यापारी।
15.रुसा घास।
16.शिला-रस।
17.देखो 'सुगंधित' (रू.भे.)
  • उदा.--व्रक्ष बल्ली का परस तै सुगंध हुऔ। लतां कां मन मांहै संकोच छै।--वेलि.टी.
रू.भे.
सुगंध, सुंगण, सुंगधि, सुगंधउ, सुगंधी, सूगंध।
पर्याय.--कसबोय, गंध, डमर, बगर, बास, बासना, बासावळी, महक़।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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