सं.पु.
सं.शकुन
1.यात्रा की शुरुआत या किसी कार्य के प्रारम्भ में या किसी घटना के सम्बन्ध में परिवेश में दिखाई देने वाले या प्रगट होने वाले लक्षण या चिन्ह, जो उस कार्य के सम्बन्ध में शुभ या अशुभ की सूचना देते हैं, सगुन, शकुन।
- उदा.--1..हरभूजी कही राव जोधौ पाहुणौ आज आय सै सुगन अहड़ा होवै छै।--नापै सांखलै री वारता
- उदा.--2..कह म्हारी चिड़िया सुगन री बातां, कद आवैला म्हारा स्यांम धणी।--मीरां
2.विभिन्न अवसरों पर शुभ मानी जाने वाली वस्तुएँ।
- उदा.--आदू तिंवार मैं सुगन औ देख अमल बिन दोघड़ा। आ रसम फैंसाई अमलियां, तार न सोचै टोघड़ा।--ऊ.का.
- मुहावरा--1.सुगन देखणौ, सुगन विचारणौ=ज्योतिष या सगुन शास्त्र में वर्णित आधारों से किसी कार्य के प्रति शुभ-अशुभ का विचार करना, भविष्य के लिए शुभाशुभ का विचार करना।
- मुहावरा--2.सुगन लेणा=अच्छे लक्षण देखकर कर्य प्रारम्भ करना, शुभ-बेला व शुभ माने जाने वाले प्राणियों का सामना करके प्रस्थान करना।
- मुहावरा--3.सुगन होणा=अच्छे लक्षण दिखाई देना, अच्छा कार्य होना।
3.विवाह का दस्तूर। (राजा-महाराजा)
5.उक्त मुहुर्त्त में सम्पादित कार्य।
6.ऐसा मांगलिक कार्य जो शकुन के रूप में ही किया जाता है।
7.मांगलिक अवसरों पर गाया जाने वाला गीत।
रू.भे.
सउण, सकन, सकुन, सकूंण, सगुण, सगुन, सघुण, सवण, सहुण, सांवण, सुकन, सुकनाई, सुगण, सुगुन, सूंण, सूण, सोण, सौंण।
क्रि.प्र.--करणौ, कराणौ, छोडणौ, मांनणौ, लैणौ, होणौ।