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सुत  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.सुत:
1.पुत्र, बेटा, वत्स। (डिं.को.)
  • उदा.--1..बोल नवाब सरस द्रढ बंधै, सुत पितु हूंत महा छळ संधै।--रा.रू.
  • उदा.--2..जै माता सुत जनमीयौ, विनां भगति वसवास। हरिया जिन अर क्या कीयौ, भारि मुंई दस मास।--अनुभववांणी
2.जन्म-कुण्डली में लग्न से पाँचवां घर। (ज्योतिष)
3.राजा, नृप।
रू.भे.
सुति, सुत्त।
4.देखो 'स्रुत' (रू.भे.)
  • उदा.--1..भागीरथ संभ्रम सुत भुवाळ, नाभंग हुवौ स्रुत सुत न्रपाळ।--सू.प्र.
  • उदा.--2..जननी तूझ हस्त मस्तक जिंह, त्रिदसालय सुख बसत निलय तिहं। अस्ट सिद्धि नव निद्धि अखंडित, परम सती जुवती सुत्त पंडित।--मे.म.


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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