HyperLink
वांछित शब्द लिख कर सर्च बटन क्लिक करें
 

सुपारी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.सुप्रिय
1.नारियल की जाति का एक वृक्ष जिसकी ऊंचाई चालीस से सौ फुट तक की होती है।
2.उक्त पेड़ का फल जो 1.5 या 2 इंच का गोलाकार व अण्डाकार होता है। इनको काटकर पान में डालकर खाया जाता है।
  • उदा.--पान-सुपारी चाट, हाट रा ओगण हेटा। मेळा-डोळां डोळ, फिरण फागड़दां फेटा।--नारी सईकड़ौ
3.इसी जाति का अन्य प्रकार का पेड़ व उसका फल जिसको काटकर भोजन के बाद मुख-शुद्धि के लिए खाया जाता है। यह अत्यन्त स्वादिष्ट एवं पौष्टिक होता है। यह औषध में भी काम आता है। चिकनी सुपारी। पर्याय.--क्रमुक, गूवाब, पूग।
  • उदा.--ना होकौ ना चिलम, पांन-बीड़ी न सुपारी। ना सुलफौ ना भांग, कदै ना वणै जुवारी।--नारी सईकड़ौ
4.सुपारी के आकार का पुरुष-लिगेन्द्रिय का अग्रभाग। (अमरत)
रू.भे.
सोपारी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

Project | About Us | Contact Us | Feedback | Donate | संक्षेपाक्षर सूची