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सुमण  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
1.छप्पय छन्द का 48वाँ भेद जिसमें 23 गुरु, 106 लघु से 129 वर्ण तथा 152 मात्राएँ होती है। (र.ज.प्र.)
2.कौस्तुभमणि।
  • उदा.--विमळांनन विबुधेस विहारी, संख चक्र धारी सुमण। भव तारण भूधर भय भंजण, हिरणगरभ त्रय ताप हण।--र.ज.प्र.
3.देखो 'सुमन' (रू.भे.)
  • उदा.--बरण रंभ क्रत सुमण वरखण, मिटण दुख ग्रह बंधण मोखण।--सू.प्र.


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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