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सुरता
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.चित्तवृत्ति, बुद्धि।
उदा.--
1..पुनि पुन्य उदै भए पूरब कै, उघरै उर अंक अपूरब कै।
सुरता
बिकसी सरसायन मैं, परि प्रेम पयोनिधि पायन मैं।--ऊ.का.
उदा.--
2..सिली
सुरता
घस सिद्धि संमद्ध, पिली प्रभुता वस बुद्धि प्रबंद्ध। हिली जुगती जस वार हजार, मिळी मुगती दस द्वार मंझार।--ऊ.का.
उदा.--
3..तूं तौ समझि सुहागण
सुरता,
नारि पलक मेरी रांम सू लगी।--मीरां
2.आत्मा।
उदा.--
कुपह कुमारग वरजि करि, सुपह साच करणी कहै। सेहनांण सुगुर तणा
सुरता
सुंणौ, प्रमन की प्रगट कहै।--विड़द सिंणगारसा.
3.लगन, ध्यान।
4.याद, स्मृति।
5.देखो 'स्रोता' (रू.भे.)
उदा.--
1..
सुरता
अर बकता बौह ग्यांनी, विन गुर गम आतम नहीं जांनी।--अनुभववांणी
उदा.--
2..सकळ प्रताप सुरसरी, हरि पद रुद्र सहित।
सुरता
रांम सुमित्र सुत, वकता विसवा मित्र।--रांमरासौ
6.देखो 'सुरत' (रू.भे.)
7.देखो 'सूरत' (रू.भे.)
8.देखो 'सुरति' (रू.भे.)
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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