सं.स्त्री.
1.जंजीरनुमा कवच विशेष जो शरीर के अधोअंग में धारण किया जाता था।
- उदा.--1..हथियार सारा सांतरा करण लागा। बगतर, झिलम, जिरह-सूथण जिरै-जूता, घोड़ां री पाखरां काढजै छै, सुवारजै छे। मनै ग्यांनै सारी तेवड़ कर रह्यौ छै। सखरा रजपूत तैयार कीजै छै।--कुंवरसी सांखला री वारता
2.शरीर के अधोभाग में धारण किया जाने वाला वस्त्र, पजामा, पायजामा।
- उदा.--1..इतरै मांहै रळै पण घर मांहै जाय, सिनांन कर सूथण पहिर पाछीया सौं सूथण फाड़ी।--रळै गढवै री बात
- उदा.--2..सूथणि वागा इकळंग सीया, कोड़ि अहुंठ कसीदा कीया।--सूरजनदासजी पूनियौ
रू.भे.
सुथण, सूंथण, सूंथणि, सूंथणी।