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सूथण, सूथणि, सूथणी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.जंजीरनुमा कवच विशेष जो शरीर के अधोअंग में धारण किया जाता था।
  • उदा.--1..हथियार सारा सांतरा करण लागा। बगतर, झिलम, जिरह-सूथण जिरै-जूता, घोड़ां री पाखरां काढजै छै, सुवारजै छे। मनै ग्यांनै सारी तेवड़ कर रह्‌यौ छै। सखरा रजपूत तैयार कीजै छै।--कुंवरसी सांखला री वारता
2.शरीर के अधोभाग में धारण किया जाने वाला वस्त्र, पजामा, पायजामा।
  • उदा.--1..इतरै मांहै रळै पण घर मांहै जाय, सिनांन कर सूथण पहिर पाछीया सौं सूथण फाड़ी।--रळै गढवै री बात
  • उदा.--2..सूथणि वागा इकळंग सीया, कोड़ि अहुंठ कसीदा कीया।--सूरजनदासजी पूनियौ
रू.भे.
सुथण, सूंथण, सूंथणि, सूंथणी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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