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सेज  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.श्‌यया, प्रा.सज्जा
1.वह चारपाई या खाट जिस पर बिस्तर बिछा कर सोने योग्य बनाया गया हो, श्‌यया, पलंग, सेज। (अ.मा.)
  • उदा.--1..एक बार तौ द्वारै आय कांन दै आहाट सुणै छै। बहुरि सेज छै, तठै पधारै छै।--वेलि.टी.
  • उदा.--2..सूर बाहर चढै चारणां सुरहरी, इतै जस जितै गिरनार आबू। बिहंड खळ खींचियां तण दळ विभाड़ै, पोढियौ सेज रण भोम 'पाबू'।--बां.दा.
  • उदा.--3..रांमा अभिरांमा कांमातुर रोवै, हड़मल हुड़दंगी सेजां मैं सोवै।--ऊ.का.
2.बिस्तर, बिछावन।
  • उदा.--चौकी रूप पिलंग चढाए, विमळ पुहप घण सेजां बिछाए।--सू.प्र.
रू.भे.
सेजइ, सेज्जा, सेज्या, सेज, सैझ।
अल्पा.
सेजड़ली, सेजड़ी, सेजरी, सेझरी। मह.--सेजड़ौ।
3.देखो 'सहज' (रू.भे.)
  • उदा.--च्यार ही वरण सुण जो चतुर, पात पुकारै पेज मैं। आ लाज सरम कुळरी अबै, साध गमावै सेज मैं।--ऊ.का.


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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