सं.स्त्री.
सं.श्यया, प्रा.सज्जा
1.वह चारपाई या खाट जिस पर बिस्तर बिछा कर सोने योग्य बनाया गया हो, श्यया, पलंग, सेज। (अ.मा.)
- उदा.--1..एक बार तौ द्वारै आय कांन दै आहाट सुणै छै। बहुरि सेज छै, तठै पधारै छै।--वेलि.टी.
- उदा.--2..सूर बाहर चढै चारणां सुरहरी, इतै जस जितै गिरनार आबू। बिहंड खळ खींचियां तण दळ विभाड़ै, पोढियौ सेज रण भोम 'पाबू'।--बां.दा.
- उदा.--3..रांमा अभिरांमा कांमातुर रोवै, हड़मल हुड़दंगी सेजां मैं सोवै।--ऊ.का.
2.बिस्तर, बिछावन।
- उदा.--चौकी रूप पिलंग चढाए, विमळ पुहप घण सेजां बिछाए।--सू.प्र.
रू.भे.
सेजइ, सेज्जा, सेज्या, सेज, सैझ।
अल्पा.
सेजड़ली, सेजड़ी, सेजरी, सेझरी। मह.--सेजड़ौ।
3.देखो 'सहज' (रू.भे.)
- उदा.--च्यार ही वरण सुण जो चतुर, पात पुकारै पेज मैं। आ लाज सरम कुळरी अबै, साध गमावै सेज मैं।--ऊ.का.