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सेज्जा
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
देखो 'सेज' (रू.भे.)
उदा.--
देव
सेज्जा
सिंहासण जांणौ रे, ज्योत ऊगां दह दिस भांणौ रे।--जयवांणी
सेज्जा, सेझ
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
1.देखो 'सेज' (रू.भे.)
उदा.--
1..हे सखी म्हारै विनां एकलौ हीज रण मैं सूतौ है पण
सेझ
री रीत नहीं छोडै छै।--वीर सतसई की टीका
उदा.--
2..विरह सौं फाटत ह्रदय मेरौ, दुख धनै रौ होहि। यह माह मास उलास धरि कै,
सेझ
कौ सुख जोहि।--विनय कुमार कृत कुसुमांजलि
उदा.--
3..सांवण की लूंबा आवै छै। भीजतां सांजै घरां नूं जावै छै। आपका रेहवास मैं आय पनां
सेझ
की त्यारी कराई। अगर चंनण री ढोलणी कसाई।--पनां
2.देखो 'सहज' (रू.भे.)
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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