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सेना  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.
1.युद्ध के लिये प्रशिक्षित तथा शस्त्रास्त्र से सज्जित मनुष्यों का दल, समूह, फौज, वाहिनी, कटक। (डिं.को.)
  • उदा.--सेना सितर हजार सूं विचित्र अमित्र बळवांन। कियौ विदा रवि चै उदै, मुदै तहव्वरखांन।--रा.रू.
2.सेना की अधिष्ठात्री देवी जो कार्तिकेय की पत्नी मानी जाती है।
3.जैनियों की एक देवी विशेष।
  • उदा.--सेना मात कूंखि मांनस सर, राज हंस लीला राजेसर।--स.कु.
रू.भे.
सेन, सेन्या, सैंना, सैन, सैनया, सैना, सैन्या।
विशेष विवरण:-प्राचीन समय में भारतीय युद्ध कला में इसके चार अंग माने जाते थे--पदाति, अश्व, गज (हाथी), रथ। वर्तमान समय में मुख्यतः तीन प्रकार की सेना होती है--स्थल सेना, जल सेना, वायु सेना। इनके कई उपविभाग भी होते हैं।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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