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सेवक     (स्त्रीलिंग--सेवकण, सेवकांणी)  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.आराधना करने वाला, भक्त, सेवा करने वाला, उपासना करने वाला, उपासक।
  • उदा.--1..दाढाळी देसांण हूं, दूर घणूं दरियाव। तारी हाथ पसारि तैं, निज सेवक री नाव।--मे.म.
  • उदा.--2..अतुळीबिळ तपइ सिवपुरी ईसर, अनडां नडण अनाथां नाथ। सिगळां ही सुक दयण सेवकां, हयवर हसत वरीसण हाथ।--महादेर मारवती री वेलि
2.नौकर, चाकर, दास, अनुचर, परिचायक।
  • उदा.--1..अदभूत रेक सोभा अमित, कळप तरोवर सेवकां। अंग अंग सोभ वाधै 'अभौ', असहै रूप असेवकां।--रा.रू.
  • उदा.--2..गिरधर गास्यां सती न होस्यां, मन मोह्यौ घण नांमी। जेठ बहू कौ नहिं रांणाजी, थे सेवक म्है स्वांमी।--मीरां
  • उदा.--3..सेवक कौ सेवक यह स्रांमी, जग सब कौ हैं अंतरजांमी।--ऊ.का.
3.पूजा, अर्चना करने वाला, पुजारी।
4.सिलाई का कार्य करने वाला, दर्जी।
5.बोरा। वि.[सं.सेवक]
1.सेवा, टहल व शुश्रूषा करने वाला।
2.पूजा, उपासना व भक्ति करने वाला, अनुयायी, उपासक।
3.नौकरी करने वाला, चाकरी करने वाला।
4.पराधीन।
5.सेवन करने वाला, उपभोग करने वाला।
6.मदद या सहायता करने वाला। ज्यूं--समाज सेवक।
रू.भे.
सेबक, सेवकर, सेवक्क, सेवग, सेवगर, सेवग्ग, सेवागर।
[सं.सेवकः]


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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