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सो     (स्त्रीलिंग--सी)  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
1.शोक।
2.दुख।
3.मनुष्य।
4.शरीर।
5.पण्डित।
6.चन्द्रमा।
7.मंत्र।
8.शुक्रवार। (एका.) सं.स्त्री.--
9.पार्वती। वि.--
1.शुद्ध, पवित्र।
2.मलीन, म्लान।
3.स्थिर।
4.सब, समस्त।
  • उदा.--अबै तौ सो कांम उलटौ हुयग्यौ। थांनै महीणैमासरी छुट्टी लैणी पड़सी। आज पूरौ महीणौ आडौ रै'यौ है।--दसदोख
5.समान, तुल्य।
  • उदा.--1..एक दिन रै समैजोग रावत प्रतापसिंघ कनै एक पंडित पुरांणीक आयौ जिकण बडा बडा ग्रंथां रौ समुद्र कौ सो पार दरसायौ।--प्रतापसिंघ म्होकमसिंघ री वात
  • उदा.--2..'सबळौ' माधवदास समोभ्रम। आहव कर मझ सो जम आतम।--रा.रू.
1.तक, पर्यन्त।
  • उदा.--उदै-अद्रजौ बारमौ भांण ऊगै, पबै अस्त सो पूगियां नीठ पूगै।--मे.म.
2.ऐसा, इस प्रकार से।
  • उदा.--1..जै जै मरणी जुग मरै, सो मरणौ आसांन। हरीया विन मरणी मरै, सो तौ कठण जांन।--अनुभववांणी
  • उदा.--2..सो सुनत ही कुतबुद्दीन अटक नदी कों उल्लंघि उतकी आरय अवनी कौ अपनै ही अधीन करत आयौ सो मुनि रत्नसिंह सवितालौं सम्मुह जाइ बिग्रह बिरचन बिचार्‌यौ।--वं.भा.
3.अतः, इसलिए।
  • उदा.--1..जेज व्हियां नाकाबंदी होवण रौ भौ हौ सो भीमड़ौ विजळी रै पळाका रै ज्यू किला रै मांय नै वळियौ।--अमरचूंनड़ी
  • उदा.--2..जद हाट रौ धणी बौल्यौ--अबारूं तौ स्वांमी जी उतर्‌या है सो आखी पेडी रुपियां सूं जड़ देवौ तौ ही न द्यूं।--भि.द्र.
1.वह, वे।
  • उदा.--1..करहा नीरूं सोइ चर, वाट चलंतउ पूर। द्राख विजउरा नीरती, सो धण रही स दूर।--ढो.मा.
  • उदा.--2..धनौ धन्य सो लोक जौ नोक धोकै। वळै गोर हूं और बातां विलो कै।--मे.म.
  • उदा.--3..स्यांम धरम्मी कांम द्रढ, खीची 'सिवौ' 'मुकन्न'। सो रहिया साजा पणै, राजा तणै जतन्न।--रा.रू.
2.वही।
  • उदा.--1..पीछै वाघैजी कवर स्रींवीकैजी नूं कयौ, ''हूं तौ आपरी मदत मैं हूं सूं आप कहौ सो तरतोज करूं जिण सूं आपरै फायदौ हुवै।''--द.दा.
  • उदा.--2..अधुरां डसणां सूं उदै, विमळ हास दुतिवंत। सो संध्या सूं चंद्रिका, फैली जांण फबंत।--बां.दा.
3.उस, उसके।
  • उदा.--छकीयौ घूंमै घाव कौ, सो घट घायल पीर। हरीया घूंमै घाव विन, भीतर मार सरीर।--अनुभववांणी
4.उन।
  • उदा.--साल्ह चलंतइ परठिया, आंगण वीखड़ियांह। सो मइं हियइ लगाड़ियां, भरि भरि मूठड़ियांह।--ढो.मा.
5.जो।
रू.भे.
सौ।
(स्त्री.सी)
अव्यय
किसी अनिश्चित मात्रा, माप और मान पर जोर देने के लिये प्रयोग किया जाने वाला प्रत्यय, शब्द। ज्यूं--बटाऊ बोल्यौ बाबाजी थोड़ौ सो दूध घाल दौ तौ न्याल कर दौ चाय बिनां नाड़ां तूटै।--फुलवाड़ी क्रि.वि.--
सर्व.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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