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स्तव, स्तवण, स्तवन  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.स्तवः, स्तवनम्‌
1.स्तोत्र, स्तव।
2.प्रशंसा, स्तुति, गुणगान।
  • उदा.--गुरु सांथइ रे चैत्य प्रवाडि करइ खरी, देरइ वांदइ रे सक्र स्तव पांचै करी। उपासिइ रे आवी इरिया पडी कमी, आगमणउ रे आलोयइ नीचउ नमी।--स.कु.
रू.भे.
सतवन।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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