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स्वच्छंद, स्वछंद  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.स्वछंदः
1.कार्तिकेय या स्कंद का एक नाम। सं.स्त्री.--
2.अपनी इच्छा या मर्जी। वि.[सं.स्वछंद]
1.मनमाना काम करने वाला, मनमौजी।
2.किसी अंकुश, नियंत्रण या मर्यादा का ध्यान न रखते हुए अपनी इच्छानुसार आचरण करने वाला।
3.भयरहित, निर्भय।
  • उदा.--रही स्वछंद रैत तव राजस, सुभ अमंद सुखियारी। आणंद कंद एक दम उठग्यौ, 'तखत' नंद अवतारी।--ऊ.का.
1.अपनी इच्चानुसार, अपनी मर्जी से।
  • उदा.--स्वछंद कियौ निज कांम सोर, उडि गयौ चंद्र की बांम ओर। उपमा कवि ऊमर दै अमोल, ततकाळ समय टंकार तोल।--ऊ.का.
2.बिना किसी भय, विचार या संकोच के।
रू.भे.
सच्छंद।
क्रि.वि.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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