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स्वस्तिक  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
एक प्रकार का मांगलिक चिह्न जो मांगलिक अवसरों पर भवनादि में अंकित किया जाता है।
2.सखिया जैसा सामुद्रिक चिह्न जो प्राय हथेली या पैर में होता है एवं शुभ माना जाता है। (सामुद्रिक)
3.एक प्रकार का शुभ द्रव्य जो विवाहादि के समय भिगोये हुए चावलों को पीसकर बनाया जाता है।
4.सथिया जैसा चिह्न।
5.एक विशेष प्रकार का राजप्रासाद।
6.चौराहा।
7.एक प्रकार का पकवान।
8.एक प्राचीनकालीन यंत्र जो शरीर में गड़े हुए शल्य आदि निकालेन के काम आता था।
9.सांप के फन पर की नीली रेखा।
10.एक विशेष प्रकार का मकान जिसके पश्चिम व पूर्व की ओर दो दालान हों।
11.लहसुन।
12.मूली।
13.रतालू।
14.लंपट, रसिया।
15.जैनियों के 88 ग्रहों में से 58 वां ग्रह।
16.एक प्रकार का योगासन।
रू.भे.
सठिक, सखियौ, सतियौ, सथियौ, साकियौ, साखियौ, साख्यौ, साथियौ, स्वस्ति।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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