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हंस     (स्त्रीलिंग--हंसणी, हंसी)  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.बड़े बड़े सरोवरों या झीलों के किनारे रहने वाला, बतख के आकार का एक सफेद जल--पक्षी। (ह.नां.मा.)
  • उदा.--1..हंस हाल परहरै, बचन पलटै दुरवासा। मह मोरां झड़ मंडै, इंद नहिं पूरै आसा।--चौथ वीठू
  • उदा.--2..बोलंति मुहुरमुह विरह गमै बै, तिस्री सुकळ निसि सरद तणी। हंसणी तै न पासै देखै हंस, हंस न देखै हंसणी।--वेलि.
  • उदा.--3..केहर हाथळ घाव कर, कुंजर ढिगली कीध। हंसां नग हर नूं तुचा, (अर) दांत किरातां दीध।--बां.दा.
2.सूर्य, भानु, रवि। (अ.मा; ना.डिं.को; नां.मा; ह.नां.मा.)
  • उदा.--1..लोथ बथ्थां भिड़ै सूर पीठांण, राचबा लागौ, बेखै ख्याल हंस भी खाचबा लागौ बाज। बैणतार झणंका दै मुनिद्र नाचबा लागौ, कपाळी जाचबा लागौ मुंडमाळी काज।--सुखदांन कवियौ
  • उदा.--2..हेत किरण हरि हंस, अंग अवतंस उजासै। अरत हुवां संगि अस्त, उदै संग उदै प्रकासै।--रा.रू.
3.शिव, महादेव। (रुद्र)
  • उदा.--गैणरां ऊछाह झूल बारंगां रा बांधै गंथी। महाभांण रत्थां खाग खुराटा मांडीस। हंस बीर पेखवा तमासा ताळी देदै हत्थी, तत्तथेई थेई करै आरूढै तांडीस।--करणीदांन कवियौ
4.ब्रह्मा। (ह.नां.मा.)
  • उदा.--चतुरमुख चतुरवरण चतुरातमक, विग्य चतुर जुग विधायक। सरवजीव विस्वक्रत ब्रह्मसू, नरवर हंस देहनायक।--वेलि.
5.विष्णु के चौबीस अवतारों में से एक। (नां.मा.)
  • उदा.--1..तूं बलि तूं हिज व्यास, पित्थ हर हंस मुमिंतर। जरा राख्यौ हय ग्रीन, धुव तूं आप धनंतर।--गज-उद्धार
  • उदा.--2..देवी नारदरूप तै प्रस्न नाख्या। देवी हंस रै रूप तत ग्यांन भाख्या। देवी ग्यांन रै रूप तूं गहन गीता, देवी क्रस्ण रै रूप गीता कथीता।--देवि.
6.परमात्मा, परब्रह्म, ईश्वर।
  • उदा.--रमै तूं रांम जुवा धरि रंग, तुं हीज समंद तुं हीज तरंग। अनोअन मांय तुहाळौ अंस, हमैं न संताय छतौ थयौ हंस।--ह.र.
7.विष्णु का एक नामान्तर।
8.मन।
  • उदा.--1..संगीत त्रत सोहती, मुनेस हंस मोहती। अनंग रंग आतुरी प्रिया नचंत पातुरी।
  • उदा.--2..बिछायत समियांन वणिया, तई जरकसि हीर तणिया। सिंध आसण छत्र सोहै, महा जगमग हंस मोहै।
9.जीवात्मा, प्राण।
  • उदा.--1..घटि घटि घण घाउ घा घाइ रत घण, ऊंच नीच छिछ ऊछळै अति। पिड़ि नीपनौ कि खेत्र प्रवाळी, सिरा हंस नीसरै सति।--वेलि.
  • उदा.--2..मार्‌यो बांण सरीर मैं, बिण सांठी विण भालि। जन हरिया मन मरि रह्‌यौ, हंस गयौ सर हालि।--अनुभववांणी
  • उदा.--3..अरू सांवत राय समेत घोड़ौ भागी। सू जादूराय रै हाथी कनै जावतौ पड़ियौ। पड़तां घोड़ै रा हंस गया।--द.दा.
10.शरीरस्थ प्राण वायु। किया.प्र.--उडणौ, जाणौ, निकलणौ, हालणौ.
12.ब्रह्मा का एक मानस पुत्र जो जीवन पर्यन्त ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता रहा।
13.साध्यदेवों में से एक।
14.एक गंधवै विशेष।
15.जरासंध का कए मंत्री।
16.रजत, चांदी। (अ.मा; ह.नां.मा.)
17.पर्वत, पहाड़।
118.एक प्रकार का शुभ रंग का घोड़ा। (शा.हो.)
19.घोड़ा, अश्व। (डिं.को.)
20.कामदेव, अंनग।
21.सव्यासियों का ऐ भेद, एक सम्प्रदाय विशेष।
22.अनिक्षद्ध का एक नाम।
23.ज्ञानी और भक्त पुरुष।
24.शिवदेवों में से एक।
25.वसुदेव एवं श्रीदेवी के पुत्रों में से एक।
26.जरासध की सेना का एक राजा जो कृष्ण--जरासंध युद्ध में बलराम के द्वारा मारा गया।
27.एक श्रैष्ठ पक्षी जाति जो कश्यप--पत्नी ताम्रा का पौत्र एवं धूतराष्ट्री की संतान मानी जाती है।
28.दोहे का ऐ भेद, जिसमें 18 गुरु और 20 लघु होते हैं।
29.प्रथम एक यगण व अन्त में दो गुरु वर्ण का एक वणिक छन्द।
30.हंस के आकार का बनाया जाने वाला प्रासाद जिस पर श्रृंग बना हो।
31.एक मंत्र विशेष।
32.रव, ध्वनि। (अनेका.)
33.सफेद रंग।* (डिं.को.) वि.--सफेद श्वेत।*
रू.भे.
हंज, हंझ, हंसल।
अल्पा.
हंजौ, हंझौ, हंसलउ, हंसलौ, हंसौ, हांसौ। मह.--हंसाल।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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