सं.पु.
सं.
1.ईश्वर, परमेश्वर, परमात्मा। (नां.मा.)
- उदा.--1..सांभळि अनुराग थयौ मनि स्यांमा, वर प्रायति वंछती वर। हरि गुण भणि ऊपनी जिका जिका हर, हर तिणि वंदै गवरि हर।--वेलि.
- उदा.--2..बप रूप ओप नव घन वरण, हरण पाप-त्रय-ताप-हरि। गुण मांन दांन चाहै सु ग्रहि, कवि सुग्यांन औ ध्यांन करि।--रा.रू.
- उदा.--3..हरीया सब हरि हाथि है, हरि मारै जीवारि। हरि धारै जो कुछि करै, ल्यै डूबंता तारि।--अनुभववांणी
2.विष्णु।
- उदा.--हेलौ कवि हिंगळाज रौ, कांन करौ करनैल। खाथी डग मारग खड़ौ, हरि हाथी री हेल।--मे.म.
3.श्रीकृष्ण। (अ.मा.)
- उदा.--1..नर मारगि एक एक मगि नारी, क्रमिया अति उछाह करेउ। अंकमाळ हरि नयर आपिवा, बाहां तिकरि पसारी बेउ।--वेलि.
- उदा.--2..पुरातन प्रीत जिसी हरि पथ, राजा लोमज हनै दसरथ।--रांमरासौ
4.श्रीरामचन्द्र, श्रीराम।
6.इन्द्र।
- उदा.--बग रिखि राजांन सु पावसि बैठा, सुर सूता थिउ मोर सर। चातक रटै बलाहकि चंचळ, हरि सिणगारै अंबहर।--वेलि.
7.सूर्य, रवि। (ह.नां.मा.)
8.शिव, महादेव।
- उदा.--हरि कहइ जिकै करि भाव घणइ हित, दासां तियां तणउ हूँ दास।--महादेर पारवती री वेलि
12.कामदेव, मदन। (ह.नां.मा.)
17.हाथी, गज।
- उदा.--रथ पदाति रूपक तणा स्वांमी नीलंजण रिद्धंजस हरि एरावण मातलि दांमिट्ठी हरिणेगमेखी सरवांगिं सन्नाह पेहिरि, द्रढ कसा बंधि, धनुखि गुण चडावी रह्या।--व.स.
18.वानर, बंदर, लंगूर। (नां.मा.)
21.हिरन, मृग। (ह.नां.मा.)
22.भ्रमर, भौंरा। (ह.नां.मा.)
27.जल, पानी।
- उदा.--हरि नै कहा, हरि नै सुना, हरि गयै हरि कै पास। हरि तौ हरि मैं गयै, हरि भयै उदास।--अज्ञात
28.सर्प, साँप।
- उदा.--हरि नै कहा, हरि नै सुना, हरि गयै हरि कै पास। हरि तौ हरि मैं गयै, हरि भयै उदास।--अज्ञात
29.मेंढक।
- उदा.--हरि नै कहा, हरि नै सुना, हरि गयै हरि कै पास। हरि तौ हरि मैं गयै, हरि भयै उदास।--अज्ञात
31.ेक वर्ष या भू भाग का नाम।
- उदा.--तेह युगलीयांना च्यारि भेद, छप्पन्न अंतरदीप 1 हैमवंत, हैरण्यवंत 2 हरि वा रम्यक तणां 3 देवकुरु उत्तरकुरु 4 एककि पाहि अनुक्रमइ अनंत गुण बल रूव सुख...।--व.स.
32.गरुड़ के पुत्रों में से एक।
34.तारकाक्ष का पुत्र एक असुर।
35.तामस मन्वन्तर कोक देवगण।
37.जैनियों के 88 ग्रहों में से उनचालीसवाँ ग्रह।
38.छप्पय छन्द का 9वां भेद जिसमें 62 गुरु, 28 लघु से 152 मात्राएँ तथा 90 वर्ण होते हैं। (र.ज.प्र.)
39.मतान्तर में छप्पय छन्द का एक अन्य भेद जिसें 55 गुरु तथा 42 लघु मात्राएँ होती हैं। सं.स्त्री.--40 किरण, रश्मि।
44.घोड़ों की एक जाति। (इस जाति के घोड़ों की गर्दन पर बड़े-बड़े बाल होते हैं, शरीर के रोयें सुनहले रंग के होते हैं) वि.--
2.पीला।
- उदा.--लाल हरी सिकळात, जिलह जाळियां अजौदां। रसां कसै रेसमां, हेम रूपी हरि हौदां।--सू.प्र.
4.काला-श्वेत। * (डिं.को.)