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हुंडी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.पुराने जमाने में सेठ साहूकारों या व्यापारियों द्वारा लिखा जाने वाला एक भुगतान पत्र जिसके आधार पर एक स्थान के व्यापारी को रुपये देकर दूसरे स्थान के व्यापारी से रुपये ले लिये जाते थ। यही प्रणाली आजकल बैंक ड्राफ्ट द्वारा चलती है, भुगतान पत्रों में इसका प्रतिहस्तान्तरण या बेचान भी होता है।
  • उदा.--तै बोल्या--म्हैं चोर छां। थैं हुंडी बटायनै हजार रुपइयां री थैली मांय नैं मेली, सौ म्हैं देखता हा।--भि.द्र.
2.किसी साहूकार या महाजन द्वारा लिखा जाने वाला वह पत्र जिसको किसी भी स्थान पर दिखाकर उसमें अंकित रुपये या उतने रुपये की वस्तु प्राप्त की जा सकती थी। यही दशा वर्तमान समय में रिजर्व बैंक आफ इण्डिया द्वारा जारी किये गये नोट या अमेरिकन डालर की है, नोट।
3.ऋण लेते समय ऋण लेने वाले द्वारा लिखाजाने वाला पत्र जिसमें रुपयों के साथ भुगतान की अवधि व ब्याज की दर भी लिखी होती है, प्रोमेजरी नोट।
4.हुक।
  • उदा.--घोड़ां रै उपरै पाखरां पडै छै। स्हौड जरद भीड़ियां हुंडीयां जड़ै छै उण वेळां कंवर कनै सिंदवी आसावरी गाइजै, दूसरा डंका लागत, मांगळ गरहरै छै।--पनां
रू.भे.
हूंडी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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