HyperLink
वांछित शब्द लिख कर सर्च बटन क्लिक करें
 

हेत  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
1.प्रेम, प्रीति, स्नेह, प्यार। (अ.मा.)
  • उदा.--1..इणा रौ हेत गाढ देख हांकारौ भरियौ फेर डेरै आया।--गोपाळ दास गौड़ री वारता
  • उदा.--2..कुसळात पूछ इम हेत कीध, देबौ रसाळ जबहार दीध।--विड़द सिंणगार
  • उदा.--3..वडै हेत 'औरंग' वतळावै, नांम महम्मतराय कहावै।--रा.रू.
  • उदा.--4..अण हितकारी आदमी, अैसैं बदर छांह। इन की थिर छाया नहीं, हरीया हेत न तांह।--अनुभववांणी
2.वात्सल्य, ममता, लाड, दुलार।
  • उदा.--1..दस मास उदरि धरि वळै बरस दस, जौ इहां परिपाळै जिवड़ी। पूत हेत पेखतां पिता प्रति, वळी विसेखै मात वदी।--वेलि.
  • उदा.--2..अमल खारा भला, खड़ग धारा भला, हेत मां रा भला, धात पारा भला, हाथ वहता भला, माल खरचता भला,...।--रा.सा.सं.
3.लगाव, मोह।
  • उदा.--1..मांस भखैं अर मद पीयै, भांगि धतूरां हेत। हरीया ऊखड़ि जावसैं, ज्युं मूळै का खेत।--अनुभववांणी
  • उदा.--2..हरीया सांमी मन मुखी, माया मांही हेत। क्युंईक गाडै रेत मैं, और वीयाजू देत।--अनुभववांणी
4.श्रद्धा, भक्ति।
  • उदा.--1..ज्यूं या कुगुरां रै जोग सूं खोटा मत मैं पड़्‌यौ हौ। तिण नैं उत्तम पुरुखां चोखौ मारग पमायौ। अनैं तै बली कुगुरां सूं हेत राखै तौ बडौ मूरख।--भि.द्र.
  • उदा.--2..ऊंचा कुळ नींचा करमन का, भगति विं भांडा भरमन का। हेत प्रीत अंजन तै राखै, नांव निरंजन का नहीं दाखै।--अनुभववांणी
  • उदा.--3..लोचां गौरां और मागौ, पूल्ह वचन विचार। ऊदौ अतली हेत सेती, झूलै जंभ दवार।--विड़द सिंणगारसा.
5.मेल-मिलाप, संपर्क।
6.इश्क, मोहब्बत, यौन सम्बन्ध।
7.आनन्द, हर्ष।
  • उदा.--मधु प्यार पगलिया लै लीन्या, पायलियां झणकै जगां जगां। नैण मंगलिया झुबळक झुबळक, हा हेत खिंडावै मगां मगां।--सकुंतला
8.देखो 'हेतु' (रू.भे.)
  • उदा.--1..तिण राव दुरगै कसबौ नवौ वसायौ नै स्री रांमचंद्रजी रै नांम सूं रांमपुरौ ठाकुरां रै हेत नांम दियौ।--नैणसी
  • उदा.--2..तिकां हिज हेत दगी नंह तोप, रही वजि रीठ बिहूं बळ रोप। जिका सणणंकि भणंकिय जेह, सुवा भड़ भुम्मि हुवा धड़ सेह।--मे.म.
  • उदा.--3..संखेपै तै सकल ग्रंथनूं लई केटलूं हेत। कहीस कथा हूं नल राजा नी थोडा मांहै संकेत।--नळाख्यांन
  • उदा.--4..सिख गुर कुं सिर धरत है, हरीया हरि कै हेत। विण बूझ्यां गुर ग्यांन कुं, सौ काहै कुं देत।--अनुभववांणी
  • उदा.--5..धूपिया धकै चिटकां घिरत धकधकै, बारूनी डकडकै तरफ बांमी। बकबकै बीर जोगण छकै दौ बखत, भकभकै हुतासण हेत भांमी।--मे.म.
11.देखो 'हित' (रू.भे.)
रू.भे.
हेता, हेती, हेतौ।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

Project | About Us | Contact Us | Feedback | Donate | संक्षेपाक्षर सूची