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हेवा  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
अभ्यस्त, आदी, किसी पर निर्भर।
  • उदा.--1..म्हारौ दुख तौ म्हैं ज्यूं-त्यूं भुगत लियौ। म्हैं तौ विरखा रै हेवा व्हैगी। सुख रौ तौ नांव ईं म्हारै हीयै झरै कोनीं।--फुलवाड़ी
  • उदा.--2..डोकरी कह्यौ--रांम मार्‌या पूरी बात तौ सुण, अठी री उठी भिड़ावण रै हैवा है, नीं व्है तौ राजाजी नै ई अठै भेज दीजै।--फुलवाड़ी
  • उदा.--3..हिंदी अंग्रेजी लिखीजै तौ परी पण मूंडौ राजस्थानी रै हेवा पड़ियोड़ौ। करतां-करावता ठैट हमैं जावता होट अंग्रेजी हिंदी सारूं फरां फरां हिलण रै हेवा पड़िया।--जहूरखां मेहर
  • उदा.--माथौ ऊंचौ करनै बोल्यौ--आपनैं कीं उजर नीं व्हैं तौ म्हैं चाटलूं। आ खाज इण इज हेवा पड़गी तौ पछै दूजौ काईं इलाज।--फुलवाड़ी
सं.स्त्री.
आदत, स्वभाव।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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