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खेत  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.क्षेत्र
1.वह भूमि खंड जिसे उसमें जुताई कर अनाज आदि बोने व फसल उत्पन्न करने के योग्य बनाया गया हो। जुताई किया हुआ भू भाग। जोतने-बोने की जमीन। क्रि.प्र.--खड़णौ, जोतणौ, बावणौ, बोवणौ।
  • मुहावरा--खेत कमावणौ; खेत कमाणौ--खेत में खाद आदि डाल कर उसमें अच्छी जुताई करना। खेत को उपजाऊ करना।
2.खेत में खड़ी फसल।
  • मुहावरा--खेत भिळणौ--खड़ी फसल में पशुओं का प्रवेश होना।
  • कहावत--1.खड़ै ज्यांरा खेत नै चढ़ै ज्यांरा घोड़ा--खेत उसी का जो उसकी जुताई करे और घोड़ा उसी को जो उस पर चढ़ाई करे, अर्थात्‌ खेत जोतने वाले का और घोड़ा सवार का.
  • कहावत--2.खेत खळे नाडौ घरे आयां पछै किंवाड़ आडौ--किसानों से खेत या खलिहान से अनाज लेना सरल है परन्तु उनके घर पहुँचने के बाद वहाँ से निकलवाना कठिन है। वि.वि.--भारतीय किसान की गरीब स्थिति होने के कारण वह प्रायः व्यापारी वर्ग से अनाज व रकम उधार लेकर ही अपनी खेती व जीविका चला पाता है। ये व्यापारी वर्ग के लोग अपनी रकम वसूली के लिये प्रायः खलिहान में अनाज तैयार होने पर रकम के स्थान पर अनाज लेने वहीं पहुँच जाते हैं, कारण कि वहाँ से वे सरलतापूर्वक ला सकते हैं। इसी सम्बन्ध में यह उक्ति कही गई है।
  • कहावत--3.खेत में पड़गी खाळी, धांन में पड़ग्यौ काग्यौ। बड़ा बेटा पै पड़ी बीजळी, तबलौ भंवरी खाग्यौ--खेत में पानी की नाली पड़ गई जिससे खाद व मिट्टी बह गई, खड़ी फसल के धान में काग्या (पौधे में अनाज का विकीर्ण होना) पड़ गया, बड़े लड़के पर बिजली गिर गई तथा काठ के बर्तन भंवरी खा गई; दुर्भाग्यशाली कृषक की दशा का वर्णन; बद-किस्मती से सब उलटा ही उलटा होता है.
  • कहावत--4.खेत विगड़ै तौ खाद देवै पण औलाद विगड़ै तौ किसौ खाद देवै--खेत उपजाऊ न हो तो उसमें खाद आदि डाल कर उपजाऊ बनाया जा सकता है परन्तु सन्तान यदि बिगड़ जाय तो उसे सुधारने हेतु कौनसी खाद दी जा सकती है। अर्थात्‌ बिगड़ी सन्तान का सुधारना अत्यन्त कठिन हो जाता है.
  • कहावत--5.खेतां मांय हाल कराळ, घेर मांय रांड लड़ाक, खळां मांय तांण परांन--खेत में तिरछा लगने वाला हल, घर में झगड़ालू स्त्री और खलिहान में अनाज पर पड़ने वाली भूसी ये सब हाथ से ही सुधारनी पड़ती हैं.
  • कहावत--6.बांध कुदाळी खुरपी हाथ, लाठी हंसुआ राखै साथ। काटै घास औ खेत निरावै, सो पूरा किसांन कहावै--जो कुदाली व खुरपी अपने हाथ में रखता हो, लाठी-हंसिया अपने साथ रखता हो और जो अपने हाथ से घास काटे और खेत में निराई करे वही पूरा किसान कहलाता है। अर्थात्‌ किसान वही जो स्वयं हाथ से खेती करे.
  • कहावत--7.लेनै बैठ गयौ जांणै बोदौ खेत बीज लेनै बैठौ--अउपजाऊ खेत बीज को अपने में ही लुप्त कर लेता है अर्थात्‌ कोई पौधा उत्पन्न नहीं करता। यह कहावत ऐसे ही व्यक्ति के लिये व्यंग्योक्ति है जो किसी वस्तु को लेकर हमेशा के लिये छुपा लेता है, उसके किसी प्रतिरूप को भी प्रकट नहीं करता.
  • कहावत--8.हळ हळां खेत फाड़लां--अच्छे हाल वाले हल से ही जुताई अच्छी हो सकती है।
2.किसी चीज के, विशेषतः पशुओं आदि के उत्पन्न होने का स्थान या देश।
  • उदा.--दिखवण वाड़ी देस रा, काठ्‌यावाड़ी खास। खैराड़ी वड खेत रा, वैराड़ी बरहास।--पे.रू.
3.युद्ध-स्थल, रणक्षेत्र, समर भूमि।
  • उदा.--1..जसवंत बीड़ा झालिया, औरंगसाह ऊपर। आया खेत उजीण रै, दळ लियां भयंकर।--द.दा.
  • उदा.--2..पबै पंख वडूजा बोम वज्रपात, खळां थाट दूजै 'दलै' बभाड़िया खेत।--हुकमीचंद खिड़ियौ
  • मुहावरा--खेत हारणौ--युद्ध हारना।
4.श्मशान-भूमि.
5.वंश, खानदान.
6.तलवार की धार का वह मध्य का भाग जहाँ से उसका प्रहार होता है.
7.पृथ्वी (नां.मा.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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