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धूंसौ  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.धूस=कांति करणे
1.धातु का बना हुआ एक प्रकार का बड़ा नगाड़ा जिसे केवल एक डंडे से बजाया जाता है।
  • उदा.--धूंसौ बाजौ ओ महाराजा थांरी मारवाड़ में धूंसौ बाजै ओ।
2.नगाड़ा (डिं.को.)
3.नगाड़े पर होने वाला प्रहार.
4.नगाड़े को बजाने का लकड़ी का बना उपकरण.
5.एक राजस्थानी लोक गीत.
6.सामर्थ्य.
7.एक प्रकार का ओढ़ने का ऊनी वस्त्र.वि.वि.--यह प्राय: काली ऊंन का बना हुआ होता है और किनारियें लाल होती हैं। यह रेशम का भी बनाया जाता है।
रू.भे.
धांसौ, धुस्सौ, धौंसर, धौंसौ। मह.--धांस, धूंस, धूस।
विशेष विवरण:-यह नक्कारखाने में अन्य वाद्यों के साथ ताल को नियमित करने का काम करता है। इसको लकड़ी की चौखटी पर रखा जाता है और खड़े खड़े बजाया जात है। इसका घोष बहुत गहरा व दूर तक जाने वाला होता है।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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