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पछेवड़ी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.पुरच्छदः+पटि या पटी या पच्छात्‌-पटी
1.मोटा सूती कपड़ा जो पहनने ओढ़ने या बिछाने के काम आता है।
  • उदा.--1..परभात रा लाखोजी घोड़ा देखण नूं पधारिया ताहरां घोड़ौ देखनै कह्यौ--रे घोड़ौ रे घोंड़ौ किणी छोड़ियौ नहीं हुंतौ! ताहरां साहणी कह्यौ जी कुण छोडै? ताहरां लाखोजी घोड़ै ऊपर पछेवड़ी फेरी। पछेवड़ी सूं घोड़ौ लूह्यौ।--नैणसी
  • उदा.--2..पछै खेतसीजी स्वांमी वै सुवांण नै सिरांणा माहि थी नवी पछेवड़ी काढ नै ओढाय दीधी।--भि.द्र.
2.निश्चित लम्बाई का, मोटा पूरा कपड़ा, थान।
  • उदा.--यूं करतां हेक दिन रावजी सूं चूक कियौ। पचीस गज पछेवड़ी रिणमलजी रै ढोलियै दोळी पळेटी। आप पौढिया हुता।--नैणसी
3.सिलमा सितारे से बना लाल या श्वेत छोटे अर्ज का लम्बा कपड़ा जो दरबार में जाते समय पघड़ी पर बाँधा जाता था। (मेवाड़)
4.सिरोपाव में पघडी के साथ दिया जाने वाला वस्त्र (मेवाड़)
5.स्री संघ द्वारा पूज्य पाट पर आसीन करते समय ओढाया जाने वाला श्वेत वस्त्र (जैन)
  • उदा.--पाटू नी पूजि ओढउ पछेवड़ी रे। पाटण नीपनी सखरी दीपड़ी रे।--स.कु.
  • मुहावरा--पछेवड़ी ओढाणी--शिष्य बनाना, पूज्य पद पर आसीन करना (जैन)
6.देखो 'पछेवड़ौ' (रू.भे.)
रू.भे.
पछेड़ी, पछेडी, पछेवड़ी, पछेवडी, पछोड़ी, पिछेड़ी, पिछेवड़ी, पिछोड़ी, पीछोड़ी।
अल्पा.
पछेड़की।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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