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पड़दायत, पड़दायतन  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
फा.पर्दः+रा.प्र.आयत
1.वह स्त्री जो राजा-महाराजा, सामंत तथा सम्पन्न व्यक्ति के यहां बिना विवाह किए ही स्त्री रूप से रहती हो, उपपत्नी, रखैल।
  • उदा.--1..कुलटा साची व्है ठुकरांणी कूड़ी। पड़दै पड़दायत रांणी सूं रूड़ी।--ऊ.का.
  • उदा.--2..मुदै एह खट महल, सहल म्रत गिणै सुपावन। पड़दायत हित प्रिया, अघट सति मिळी अठावन।--रा.रू.
2.वह स्त्री जो पर्दा रखती है।
  • उदा.--पड़दायत नारी मंदिर माळिये रे। जोवै जाळ्‌यां में मूंडौ घाल रे।--जयवांणी
3.वह जिसके यहाँ पर्दा रखने की प्रथा हो।
रू.भे.
पड़दाइत, परदाइत, परदायत।
सं.पु.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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